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बंधे रहने के बाद, स्थिति का क्षय होने पर वे भी अलग हो जाते हैं। । उक्त विवेचन सुनकर गोष्ठामाहिल का मन शंकित हो गया। उन्होंने कहा - कर्म को जीव के साथ बद्ध मानने से मोक्ष का अभाव हो जाएगा। फिर कोई भी जीव मोक्ष नहीं जा सकेगा। अतः सही सिद्धांत यही है कि कर्म जीव के साथ स्पृष्ट मात्र होते हैं, बंधते नहीं है, क्योंकि कालान्तर में वे जीव से वियुक्त होते हैं। जो वियुक्त होता है, वह एकान्तरुप से बद्ध नहीं हो सकता। उन्होंने अपनी शंका विन्ध्य के सामने रखी। विन्ध्य ने कहा आचार्य दुबर्लिका पुष्य मित्र ने इसी प्रकार का अर्थ बताया था।
गोष्ठामाहिल के गले यह बात नहीं उतरी। वह अपने ही आग्रह पर दृढ रहे। इसी प्रकार नौंवे पूर्व की वाचना के समय प्रत्याख्यान के यथाशक्ति और यथाकाल करने की चर्चा पर विवाद खडा होने पर उन्होंने तीर्थंकर भाषित अर्थ को भी स्वीकार नहीं किया, तब संघ ने उन्हें बाहर कर दिया। आत्मा के साथ कर्म बद्ध नहीं होते मानने के कारण इनका मत अबद्धिकवाद कहलाया। । उक्त सात निन्हवों में से जमाली, रोहगुप्त और गोष्ठामाहिल ये तीन अंत तक अपने आग्रह पर दृढ रहे और भगवान के शासन में पुनः सम्मिलित नहीं हुए शेष चार निन्हव प्रायश्चित लेकर पुनः शासन में आ गए।
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