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इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए अणुजाणह मे मिउग्गहं
निसीहि अहो कायं काय-संफासं खमणिज्जो भे किलामो
* स्थानकवासी परंपरा के अनुसार * * इच्छामि खमासमणो का पाठ * चाहता हूं। हे क्षमाश्रमण! वंदना करना। शक्ति के अनुसार। शरीर को पाप क्रिया से हटा करके। आप मुझे आज्ञा दीजिए। मितावग्रह (परिमित यानी चारों ओर साढ़े तीन हाथ भूमि) में प्रवेश करने की आज्ञा पाकर शिष्य बोले कि हे गुरुदेव! मैं। समस्त सावध व्यापारों को मन, वचन, काया से रोक कर। आपकी अधोकाया (चरणों) को। मेरी काया (हाथ और मस्तक) से स्पर्श करता हूं (छूता हूं)। इससे आपको मेरे द्वारा अगर कष्ट पहुंचा हो तो उस कष्ट प्रदाता को अर्थात् मुझे क्षमा करें। हे गुरु महाराज! अल्प ग्लान अवस्था में रहकर। बहुत शुभ क्रियाओं से सुख शान्ति पूर्वक। आपका दिवस बीता है न ? आपकी संयम रूप यात्रा निराबाध है न? आपका शरीर, इन्द्रिय और मन की पीड़ा (बाधा) से रहित है न। हे क्षमाश्रमण! क्षमा चाहता हूं। जो दिवस भर में अतिचार (अपराध) हो गए हैं उसके लिए। आपकी आज्ञा रूप आवश्यक क्रियाओं के आराधन में दोषों से निवृत्ति (बचने का प्रयत्न) रूप प्रतिक्रमण करता हूं। आप क्षमावान श्रमणों की। दिवस संबंधी आशातना की हो। तैंतीस आशातनाओं में से कोई भी आशातना का सेवन किया हो। जिस किसी भी मिथ्या भाव से किया हो (चाहे वह)।
अप्पकिलंताणं बहुसुभेणं भे! दिवसो वइक्कंतो? जत्ता भे? जवणिज्जं च भे खामेमि खमासमणो देवसियं वइक्कम आवस्सियाए पडिक्कमामि
खमासमणाणं देवसिआए आसायणाए तित्तिसन्नयराए जं किंचि मिच्छाए
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