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________________ १० 'अ','का', 'का' तथा 'ज"ज्ज' . बोलते समय दोनों हाथों की दसों ऊँगलियों से (नाखून का स्पर्श न हो, इस प्रकार) चरवले पर स्थापित मुंहपत्ति को स्पर्श करनी चाहिए। नीचे से ऊपर की ओर हथेली फिराते समय बीच में कहीं भी अलग नहीं होना चाहिए। 'त्ता"व' और 'च' बोलते समय ___ मुँहपत्ति को पूंठ न लगे, उस तरह मध्यस्थान पर हथेली को एकत्रित करनी चाहिए। १४ १२ 'हो', 'यं"य' तथा 'भे', 'णि', 'भे' 'संफासं' तथा 'खामेमि' बोलते हुए शीर्षनमन बोलते समय दोनों हाथों की दसों ऊंगलियों से करते समय दोनों हाथों की खुली। (नाखून का स्पर्श न हो, इस प्रकार) (अंजलि जैसी) हथेली हल्के से मुहपत्ति पर कपाल प्रदेश पर स्पर्श करना चाहिए। स्पर्श करके मस्तक हथेली में रखना चाहिए। १५ मस्तक हथेली पर स्पर्श करे, उस समय पीछे से थोड़ा भी ऊंचा नहीं होना चाहिए। (त्रस जीवों की हिंसा से बचने के लिए) १६ १७ 'आवस्सियाए' बोलते समय पहले पीछे की ओर दृष्टि से पडिलेहणा कर, उसके बाद तीन बार बाएं से दाहिने. क्रमशः प्रमार्जना करनी चाहिए। पहली वांदणा में तथा दूसरी वांदणा के अन्त में गुरु के अवग्रह से बाहर निकलते समय की मुद्रा। अवग्रह से बाहर निकलते समय की योगमुद्रा के समान दोनों पैरों के बीच में अन्तर रखना चाहिए। दूसरी वांदणा में ऐसा कोई नियम नहीं है। 106. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004053
Book TitleJain Dharm Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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