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________________ तं - उनको। देवदेव-महिअं - इन्द्रों द्वारा पूजित को। सिरसा - मस्तक झुकाकर। वंदे - मैं वन्दन करता हूं। महावीरं - श्री महावीर स्वामी को। इक्को - एक। वि - भी। नमुक्कारो - नमस्कार। जिणवर-वसहस्स - जिनेश्वरों में उत्तम। वद्धमानस्स - श्री वर्द्धमान स्वामी को। संसार-सागराओ - संसार रूपी सागर से। तारेइ - तिरा देता है। नरं - पुरुषों को। व - अथवा। नारिं - नारियों को। वा - अथवा। उज्जिंतसेल-सिहरे - गिरनार पर्वत के शिखर पर। दिक्खा - दीक्षा। नाणं- केवलज्ञान। इक्को विनमाक्कासी जाणवण्यासहरसदगाणरस उज्जितसेल-सिहरे नाण दिक्खा निसीहिया जरस निसीहिआ - निर्वाण। जस्स - जिनका। तं - उन। धम्म-चक्कवट्टि - धर्मचक्रवर्ती। अरिठ्ठनेमि - श्री अरिष्ठनेमि भगवान के लिए। नमसामि - मैं नमस्कार करता हूं। चत्तारि- चार। अट्ठ- आठ। दस-दस। त धम्मचक्कवट्टी अरिहनेमि नमसामि 100, Jain Education International For Personal & Private use only www.jaineliterary.org
SR No.004053
Book TitleJain Dharm Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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