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________________ * सिद्धाण बुद्धाणं (सिद्धस्तव) * सिद्धाणं बुद्धाणं, पार-गयाणं परंपर-गयाणं। लोअग्गमुवगयाणं, नमो सया सव्व-सिद्धाणं ।।1।। जो देवाण वि देवो, जं देवा पंजली नमसंति। तं देवदेव-महियं, सिरसा वंदे महावीरं ||2|| इक्को वि नमुक्कारो, जिणवर-वसहस्स वद्धमाणस्स। संसार-सागराओ, तारेइ नरं व नारिं वा ||3|| उज्जिंतसेल-सिहरे, दिक्खा नाणं निसीहिआ जस्स। तं धम्म-चक्कवट्टि, अरिठ्ठनेमिं नमसामि ||4|| चत्तारि अट्ठ दस दो अ, वंदिआ जिणवरा चउव्वीसं। परमट्ठ-निट्ठिअट्ठा, सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु ।।5।। शब्दार्थ सिद्धाणं - सिद्धों के लिए, सिद्धि पद पाने वालों के लिए बुद्धाणं - सर्वज्ञों के लिए। पार-गयाणं - संसार को पार करने वालों के लिए। परंपर-गयाणं - गुणस्थानों के अनुक्रम से मोक्ष पाये हुओं के लिए लोअग्गमुवगयाणं - लोके अग्रभाग पर गये हुओं के लिए। नमो - नमस्कार हो सया - सदा। सव्व-सिद्धाणं - सब सिद्ध भगवंतों को। जो - जो। देवाण - देवों के। वी - भी । देवो - देव । जं - जिनको। देवा- देव। पंजली - अंजलीपूर्वक, हाथ जोड़कर। नमंसंति - नमस्कार करते हैं। पारायाण PERece 99 Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004053
Book TitleJain Dharm Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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