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________________ पीपलका वध कालुबर का वृक्ष * पांच गुलर फल :- पांच प्रकार के उदम्बर फल (टेटा) का त्याग :___XIV. वड का फल XV. पीपल का फल XVI. पीलंखन का फल XVII. उदुंबर का फल XVIII. कलुबर का फल इन पांचों वृक्षों के फल उंबर अथवा गूलर कहलाते हैं। इनमें राई के दानों से भी बारीक अनगिनत बीज होते हैं। एक दम बारीक असंख्य बीजों के अंदर बहुत सारे बहुत ही सूक्ष्म मच्छर जैसे त्रस जीव होते हैं। जिन्हें नजर से देखना भी मुश्किल है। ऐसे सूक्ष्म जंतुओं की हिंसा से बचने के लिए ऐसी तुच्छ हिंसक चीजों का त्याग कर देना चाहिए। __* पांच गूलर फलों के भक्षण से हानियां * * यह जीवन यापन के लिए अनुपयोगी और रोगोत्पादक है। इन्हें खाने से असंख्य सूक्ष्म जीवों का नाश होता है। * लौकिक शास्त्र में कहा है कि उदम्बर फल में विद्यमान कोई जीव खाने वाले के मस्तिष्क में प्रवेश कर जाय तो अकाल मृत्यु होती है। * प्राणों का त्याग करना अच्छा है, परंतु अनेक त्रस जीवों का तथा बहु बीजों से भरे फल का भक्षण करना उचित नहीं है। * चार तुच्छ चीजें * XIX. बर्फ (हिम) अभक्ष्य :- छाने, अनछाने पानी को जमाकर या फ्रीज में रखकर बर्फ जमाया जाता है। ___ जैन दर्शन ने पानी की एक बूंद में असंख्य जीव का अस्तित्व देखा है। एक - एक जीव को यदि सरसों का रुप दिया जाये तो पूरा विश्व भर जाएगा परंतु जलबूंद के जीव समाप्त नहीं होंगे। ऐसी असंख्य बूदों को इकट्ठा करते हैं। तब एक आईस क्यूब बनता हैं। पानी जब झीरो डिग्री पर पहुंचता है तब बर्फ में रुपान्तर होता है। इस तरह रुपांतरित जल में असंख्य बेइन्द्रिय जीव उत्पन्न हो जाते हैं। विष्ठा में खदबद करते कीडे बर्फ के अंदर सफेद _ अत्यंत बारीक जैसे असंख्य कीडे भी देखे जा सकते हैं। ___इस प्रकार की हिंसा और अनावश्यक उपयोग के कारण एवं शरीर के लिए हानिकारक होने के कारण ज्ञानियों ने बर्फ को अभक्ष्य कहा है। * बर्फ भक्षण से होने वाली हानियाँ * * इसके भक्षण से मंदाग्नि अजीर्ण आदि रोगों की उत्पत्ति होती है। * यह आरोग्य का दश्मन है. फ्रीज केपेय पदार्थ भी हानिकारक होते हैं। * बर्फ का उपयोग अन्य खाद्य पदार्थों में करने से, वह भी अभक्ष्य बन जाते हैं। Locatha Location जळराग्नि और जीवन को 57
SR No.004052
Book TitleJain Dharm Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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