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* रात्री भोजन के कारण जिस आयुष्य का बंध होता है वह तिर्यंचगति या नरक गति का होता है। * रात्री भोजन करने पर धार्मिक क्रिया, प्रतिक्रमण, शुभध्यानादि नहीं हो सकते। * नरक के चार द्वारों में रात्रीभोजन प्रथमद्वार है। इसलिए यह त्यागने योग्य ही है।
* चार महाविगइ त्याग * विगइ अर्थात् जिसके भक्षण से जीव का स्वभाव विकृत हो जाता हैं उसे विगई कहते हैं। जैन दर्शन में । विगइ के दो भाग बताए गए है।
* विगई * 1. भक्ष्य :- दूध, दही, घी, तेल, कडा - तला हुआ, गुड एवं शक्कर 2. अभक्ष्य (महाविगइ) :- मांस, मदिरा, शहद, मक्खन भगवान महावीर ने उत्तराध्ययन सूत्र में कहा है कि :- "रसा पगामं न निसेविअव्वा"
__अर्थात् रस याने विगइ का अधिक मात्रा में सेवन नहीं करना, क्योंकि विगइ चित्त को उत्तेजित करती है और पाप कर्म करवाती है। भक्ष्य विगइ का भक्षण भी अल्प होना चाहिए तोअभक्ष्य विगइ का त्याग भी निश्चित है। जैन दर्शन में कहा गया है।
" मधे मांसे मथुनि च, नवनीते चतुर्थ के। उल्पयन्ते विलीयन्ते, सुसूक्ष्मा जन्तुराशयः।।"
अर्थात् शराब, मांस, मधु और मक्खन इन चारों पदार्थों में अति सूक्ष्म जीव सतत उत्पन्न होते हैं और मरते हैं। V. मांस त्याग :
* मांस के प्रकार * 1. जलचर का मांस :- पानी में होनेवाले जीव। मच्छी, केकडा, कछुआं इत्यादि का मांस। 2. स्थलचर का मांस :- धरती पर चलने वाले जीव। गाय, भैंस, भेड, बकरा, सांप, नेऊला इत्यादि का मांस। 3. खेचर का मांस :- आकाश में उडनेवाले जीव। कबूतर, मुर्गी, पोपट, चिडियाँ इत्यादि का मांस और अंडा।
4. विकलेन्द्रिय का मांस :- महीन जीवजंतु। केचुआ, चींटी, मकोडा, तीडघोडा इत्यादि का मांस।
उपरोक्त प्रकार में से कोई भी प्रकार के जीव का मांस खाना मांसाहार कहलाता है जो महापाप स्वरुप है। चरबी, जिलेटीन आदि भी मांसाहार ही है। फलित - अफलित दोनों प्रकार के अंडे भी मांसाहार ही है, शाकाहारी अंडे जैसा कुछ नहीं है। अफलित अंडा भी सजीव पंचेन्द्रिय भ्रूण ही है। पंचेन्द्रिय प्राणियों का वध बिना मांस तैयार नहीं हो सकता। बल्कि उसमें प्रतिपल समूर्छिम जीव, अनंत निगोद के एकेन्द्रिय जीव, सूक्ष्म कीट उत्पन्न होते हैं। अतः मांस सर्वथा अभक्ष्य माना गया है।
* मांसाहार से होने वाली हानियाँ * * मांस भक्षण से तामसी वृत्ति, कठोरता, क्रूरता आती है। * मांसाहार से कैंसर, रक्तपित्त, वातपित्त, पथरी आदि रोग उत्पन्न होते हैं। * मांस में नाइट्रोजेन आवश्यकता से अधिक होने से मनुष्य मोटा हो जाता है। शरीर में अधिक उष्णता होने से । क्रोधी, कामी, तामसी बन जाता है। जिससे छोटी - छोटी बातों में खूना खराबा, बलात्कार आदि के प्रसंग बढते जाते हैं।
अभक्ष्य
AMMARIMARRIALI
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