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________________ कि यह सेठ इस प्रकार दरिद्र अवस्था में क्यो रह रहे हैं। उन्होंने अपने साथ आये अन्य मुनि से यह कहा । सुवर्ण के विषय में बात सुनकर धनद सेठ ने सोमचन्द्र मुनि से कहा कि वे अपने कर कमलों से उस कोयले के ढेर को सुवर्ण बना दें। नमस्कार मंत्र का स्मरण कर मुनि ने जब ऐसा किया तो कोयले से भरे चरु सुवर्ण युक्त हो गए। धनद सेठ ने देवेन्द्रसूरीश्वरजी की सलाह अनुसार उस धन से प्रभु महावीरस्वामी का एक सुंदर मंदिर बनवाया । सोमचन्द्र मुनि बडे विनयी, विनम्र, विवेकी, बुद्धिमान, गुणवान, भाग्यवान और रुपवान थे। उनके गुरु ने उन्हें आचार्यपद देने का सोचा। संघ को इकट्ठा करके सोमचन्द्रमुनि को आचार्य पद देने की बात कही। संघ ने हर्षपूर्वक बात को स्वीकारा । वैशाख सुदि तीज अक्षयतृतीया के दिन शुभमुहूर्त में सोमचन्द्रमुनि को देवचन्द्रसूरिजी ने आचार्य पदवी दी और उनका नाम हेमचन्द्रसूरिजी जाहिर किया। संघ ने उनका जयजयकार किया। 90 आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरि पाटण के राजमार्ग पर चले जा रहे हैं। उनके पीछे दो शिष्य हैं सामने से गुजरात के राजा सिद्धराज की सवारी आ रही थी। राजा की नजर हेमचन्द्रसूरि पर गिरी । प्रतापी व प्रभावशाली आचार्य को देखकर राजा स्तब्ध हो गया और उसे लगा कि यह साधु कौन होंगे ? मैंने आज तक ऐसे साधु देखें नहीं है। हाथी उपर से राजा की और श्री हेमचन्द्रचार्य की आंख से आंख मिली। राजा ने दो हाथ जोड़कर प्रणाम किये। आचार्य ने दाहिना हाथ ऊँचा करके धर्मलाभ का आशीर्वाद दिया । यह थी सिद्धराज के साथ हेमचन्द्राचार्य की पहली मुलाकात। इसके बाद कभी - कभार आचार्यश्री राजसभा में जाने लगे। उनकी मधुर और प्रभावशाली वाणी का राजा पर अच्छा असर पडने लगा और राजा जैन धर्म तरफ आकर्षित हुआ। एक बार राजसभा में ही राजा ने राजाभोज द्वारा रचित "सरस्वती कण्ठाभरण" का ग्रंथ हाथ में लेकर राजसभा में बैठे हुए विद्वानों को कहा, राजा भोज द्वारा रचे गये ऐसे व्याकरण शास्त्र जैसा शास्त्र क्या गुजरात का कोई विद्वान नहीं रच सकेगा ? क्या ऐसा कोई विद्वान विशाल गुजरात में नहीं जन्मा है ? राजा की और आचार्य हेमचन्द्रसूरि की आंखे मिली। मैं राजा भोज के व्याकरण से भी सवाये व्याकरण की रचना करूंगा। आचार्य हेमचन्द्रसूरिजी ने आह्वान स्वीकार कर लिया। 109
SR No.004052
Book TitleJain Dharm Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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