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प्राणघा
जिनमंदिर
चतविध संघ
प्र वचन
बीच जिन
जैन जतिशासनम्
भावार्थ :- हे वीतराग प्रभो ! हे जगद्गुरु ! आपकी जय हो । हे भगवन् ! आपके सामर्थ्य से मुझे संसार के प्रति वैराग्य उत्पन्न हो, मोक्षमार्ग में चलने की शक्ति प्राप्त हो और इष्टफल की सिद्धि हो (जिससे मैं धर्म का आराधन सरलता से कर सकूँ।)
हे प्रभो ! (मुझे ऐसा सामर्थ्य प्राप्त हो कि जिससे) मेरा मन लोकनिंदा हो ऐसा कोई भी कार्य करने को प्रवृत्त न हो, धर्माचार्य तथा माता पितादि बडे व्यक्तियों के प्रति परिपूर्ण आदर भाव का अनुभव करू और दूसरों का भला करने को तत्पर बनु। और हे प्रभो ! मुझे सद्गुरु का योग मिले, तथा उनकी
आज्ञानुसार चलने की शक्ति प्राप्त हो | यह सब जहां तक मुझे संसार में चारित्र
परिभ्रमण करना पडे, वहां तक अखण्ड रीति से प्राप्त हो।
हे वीतराग ! आपके प्रवचन में यद्यपि निदान बंधन अर्थात् फलकी याचना का निषेध है, तथापि मैं ऐसी इच्छा करता हूँ कि प्रत्येक भव में आपके चरणों की उपासना करने का योग मुझे प्राप्त हो। हे नाथ आपको प्रणाम करने से दुःख नाश हो, कर्म का नाश हो, सम्यक्त्व मिले और शांतिपूर्वक मरण हो ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो।
सर्व मंगलों का मंगलरुप, सर्व कल्याणों का कारणरुप और सर्व धर्मों में श्रेष्ठ ऐसा जैन शासन जय को प्राप्त हो रहा है। साध | साध्वी और श्रावक / श्राविका दिन एवं रात्रि के भाग में जो चैत्यवंदन करते हैं, उसमें यह सूत्र बोला जाता है। मन का प्रणिधान करने में यह सूत्र उपयोग है इसलिए यह पणिहाण - सूत्त कहलाता हैं इसमें वीतराग के समक्ष निम्न वस्तुओं की प्रार्थना की जाती है।
1. भवनिर्वेद :- फिर - फिरकर जन्म लेने की अरुचि। 2. मार्गानुसारिता :- ज्ञानियों द्वारा प्रदर्शित मोक्षमार्ग में चलने की शक्ति। 3. इष्टफल सिद्धि :- इच्छित फल की प्राप्ति। 4. लोक विरुद्ध त्याग :- मनुष्य निंदा करें, ऐसे कार्यों का त्याग। 5. गुरुजनों की पूजा :- धर्मगुरु, विद्यागुरु, बडे व्यक्ति आदि की पूजा। 6. परार्थकरण :- परोपकार करने की वृत्ति। 7. सद्गुरु का योग 8. सद्गुरु के वचनानुसार चलने की शक्ति 9. वीतराग के चरणों की सेवा 10. दुःख का नाश। 11. कर्म का नाश 12. समाधि मरण - शांतिपूर्वक मृत्यु 13. बोधि लाभ - सम्यक्त्व की (जैन धर्म की) प्राप्ति।
* चेइयथय सूत्तं * (अरिहंत चेइयाणं सूत्र)
___ अरिहंत चेइयाणं करेमि काउस्सग्गं वंदण - वत्तियाए पूअण - वत्तियाए सक्कार - वत्तियाए सम्माण - वत्तियाए बोहिलाभ - वत्तियाए निरुवसग्ग - वत्तियाए
सद्धाए मेहाए धिईए धारणाए अणुप्पेहाए वड्डमाणीए ठामि काउस्सग्गं। अरिहतचेइयाण
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