SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उदाहरण के लिए एक हिंसक व्यक्ति छुरी, चाकू चलाकर घातक बुद्धि से किसी व्यक्ति को मारता है और एक डॉक्टर रोगी को स्वस्थ करने के लिए शल्य चिकित्सा (ऑपरेशन) करता हुआ छुरी, चाकू का प्रयोग करता है। उक्त दोनो व्यक्तियों ने शस्त्र, छुरी, चाकू का प्रयोग तो किया, अधिकरण (साधन) भी उनके समान हैं, परंतु दोनों के अध्यवसायों में बहुत बडा अंतर है। एक के अध्यवसाय हिंसक होने से संक्लिष्ट है, अशुभ है, जबकि दूसरे के अध्यवसाय शांति, आरोग्यदायक होने से शुभ है। अतएव पहला हिंसक व्यक्ति अशुभ कर्मबंध का भागी होता है, जबकि दूसरा व्यक्ति शस्त्र का प्रयोग करने पर भी मुख्यतया शुभ कर्म • पुण्यकर्म का भागी होता है। - * आश्रव के भेद : इन्द्रिय, कषाय, अव्रत, क्रिया और योग ये आश्रव के मूल पाँच भेद हैं। इनके क्रमशः पाँच, चार, पाँच, पच्चीस और तीन भेद हैं। यह सब मिलाकर आश्रव के 42 भेद हो जाते हैं। अव्वय किरिया पण चउर पंच पणुवीसा । इंदिय - कसाय जोगा तिनेव भवे आसवभेयाउ बायाला (स्थानांग टीका ) * आश्रव के 42 भेद : इन्द्रिय 5 कषाय 4 अव्रत 5 योग 3 क्रियाएँ 25 1. सम्यक्त्वी क्रिया - - स्पर्शेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, ध्राणेन्द्रिय, चक्षुन्द्रिय, श्रोतेन्द्रिय :- क्रोध, मान, माया, लोभ : • प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह | :- मनोयोग, वचनयोग, काययोग । कायिकी आदि । : कुल :- 42 भेद इन इन्द्रियो आदि द्वारा जो कोई भी प्रवृति हो, वे यदि प्रशस्त (शुभ) भावपूर्वक हो तो शुभाश्रव होता है और अप्रशस्त भावपूर्वक हो तो अशुभश्रव होता है। * 25 क्रियाएँ : Jain Education International जिस कार्य के द्वारा आत्मा शुभाशुभ कर्म को ग्रहण करती है, उसे क्रिया कहते हैं। क्रिया कर्मबंध की कारणभूत एक चेष्टा है। जब यह जीव के निमित्त से होती है तो जीव क्रिया और जब यह अजीव के निमित्त से होती है तो अजीव क्रिया कहलाती है। यद्यपि दोनो क्रियाओं में जीव का व्यापार निश्चित रुप से रहता है। जीव क्रिया के दो भेद हैं। 2. मिथ्यात्वी क्रिया सम्यग्दर्शन के होने पर जो क्रियाएँ होती है वह सम्यक्त्वी क्रिया है । मिथ्यादर्शन के होने पर जो क्रियाएँ होती है वह मिथ्यात्वी क्रिया है । 49 sahavane ose Chly ज
SR No.004051
Book TitleJain Dharm Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy