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से वह मरकर नरक में पहुँचा।
* दृष्टि राग :- अपनी पकडी हुई मान्यता का आग्रह करना। यह राग कुप्रवचादि या सिद्धांत से विरुद्ध मत स्थापन के प्रति होता है। जैसे गौशालक भगवान महावीर स्वामी से अलग होकर आजीवक संप्रदाय का आचार्य बन गया था। अंतिम समय में उसको पश्चाताप हुआ और मति सुधर गयी थी फिर भी दृष्टि राग के कारण उसने जन्म - परंपरा को बढाया।
11. द्वेष :- नापसंद वस्तु पर घृणा या तिरस्कार भाव रखना द्वेष है। जैसे राग की परंपरा जन्म जन्म तक चलती है वैसे ही द्वेष की परंपरा भी चलती है। द्वेष भाव से संबंधित गुणसेन, अग्निशर्मा का उदाहरण समरादित्य चारित्र में प्राप्त होता है। अग्निशर्मा तापस और गुणसेन राजा दोनो बाल मित्र थे। राजा गुणसेन ने अग्निशर्मा को तीन बार मासक्षमण तप के पारणे का निमंत्रण दिया किंतु हर बार गुणसेन राजा अपनी राज्य व्यवस्था की व्यस्तता के कारण पारणे के दिन भूलता रहा और अग्निशर्मा हर बार निराश होकर लौटता रहा। इस पर वह क्रोधित होकर द्वेष की गांठ बांध ली और गुणसेन को मारने का निदान कर लिया। द्वेष भाव से निदान करके अग्निशर्मा के जीव ने गणसेन राजा को नौ भव तक कभी माता. कभी बहन कभी पत्नी और छोटे भाई के रुप में मारता हुआ अनेक जन्मों तक दुगर्ति में परिभ्रमण करता रहा। सामान्यतः अपना अहित करने वाले के प्रति द्वेष भाव आता है, परंतु कुछ प्राणियों में जन्म जात ही द्वेष या वैर
भाव होता है। जैसे बिल्ली और चूहा। या साँप और नेवला आदि । साँप ने नेवले का कुछ कलह
बिगाडा नहीं, परंतु वह उसे देखते ही उस पर झपटकर मार डालता है।
12. कलह :- वाद - विवाद, लडाई, झगडा करना कलह हैं। क्रोध जब वाद - विवाद का रुप धारण कर लेता है तब कलह कहलाता हैं। जैसे ईंधन डालने से अग्नि भडकती है, वैसे ही क्रोध में प्रतिक्रिया रुप शब्द बोलते जाने से कलह हो जाता है। हाथापाई, मारपीट और खून - खराबा यह सब कलह के दुष्परिणाम है। इससे जीव अनेक भवों में अति दुःसह दुर्भाग्य को प्राप्त करता है | आत्मा में मलिनता बढती है, सम्मान की हानी होती है, वातावरण दूषित होता है एवं धर्म का नाश करते हुए पाप का विस्तार करता है।
13. अभ्याख्यान :- दूसरों पर झूठा कलंक लगाना। कोई दुर्गुण या बुराई न होने पर भी उसे बुरा बताना अभ्याख्यान है।
14. पैशुन्य :- चुगली करना, इधर की बात उधर करना, दो व्यक्तियों को लडा देना, परस्पर भिडा देना आदि पैशुन्य के रुप हैं। पैशुन्य वृत्तिवाला भेदी प्रकृत्ति का होता है, उसका रस दूसरों के रहस्य को खोलने में रहता
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