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________________ विभीषिका से बचें। यह बात सुनकर रावण फूफकार उठा - हे विभीषण ! मैं अपमान या पराजय भय से सीता को कभी नहीं लौटाऊंगा। दुनिया कहेगी भयभीत हो गया। इतिहास साक्षी है कि रावण ने उस मान के वशीभूत हो लंका का नाश कर दिया। माया कपटपूर्ण व्यवहार माया 8. माया :कहलाती है। मन में कुछ, वचन में कुछ एवं काया से कुछ भिन्न प्रवृत्ति। इस प्रकार का दुहरा भाव या लुकाव - छिपाव माया है। अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को भुलावे में डालना, दूसरों से लेख व पुस्तके लिखवाकर उस पर अपना नाम देना, ऊपर से मधुर बोलना, भीतर कटुता भरा होना, आश्वासन देकर उससे मुकरजाना, विश्वासघात करना, झूठा प्रदर्शन करना, कूटनीति करना आदि माया के अनेक रुप हैं। माया करनेवाला बगुले की तरह होता है। बगुला पानी में तैरती मछलियों को पकडने के लिए एक पैर पर चुपचाप खडा होता है। बडा भला दिखकता है, परंतु उसके मन में मछलियों को खाने की घात लगी रहती है। 9. लोभ :- लालचपूर्ण व्यवहार लोभ है। अप्राप्त को प्राप्त करने की कामना और प्राप्त को बनाये रखना संचयवृत्ति लोभ है। पेट व शरीर की आवश्यकता तो बहुत सीमित होती है। परंतु लोभी तो असीम इच्छावाला होता है। चूहे की तरह वह प्रत्येक वस्तु को संग्रह करना चाहता है। चूहा जो मिला उसे बिल में ले जाकर जमा करता रहता है। इसी प्रकार लोभी की मनोवृत्ति जमा करने की होती है। 10. राग :- मनपसंद वस्तु पर आसक्त होना । जब किसी पदार्थ या प्राणी के प्रति लगाव या आकर्षण पैदा होता है Jain Education International तो उसे राग कहते हैं। संसार भ्रमण का मूल कारण है राग । जीव राग में सुख मानता है, वस्तुतः जहा राग है, वहाँ दुख है। राग के कारण अज्ञानी जीव किसी व्यक्ति या पदार्थ को अपना मानता है। देह राग से देह चिंता करता है, पदार्थ राग से संग्रह करता है और परिवार राग से उनके पालन पोषण के लिए जिंदगी भर लगा रहता है। शास्त्रों में राग तीन प्रकार का बताया गया है। * स्नेह राग :- कोई विशिष्ट गुण न होने पर भी जिसकी तरफ मन खिंचता है। उसे स्नेह राग कहते हैं। स्नेह राग व्यक्ति के प्रति होता है। बाईस्वें तीर्थंकर अरिष्टनेमि भगवान की राजमती के साथ लगातार नौ भव तक स्नेह राग की परंपरा चली। * काम राग :- जिसके साथ संसार सुख भोगने की इच्छा हो, उसे काम राग कहते हैं। यह राग इन्द्रियों के विषयों में होता है। मणिरथ राजा अपने छोटे भाई युगबाहु की पत्नि मदनरेखा पर मोहित हो गया था । कामराग की उसमें इतनी तीव्रता थी कि मदनरेखा को पाने के लिए अपने छोटे भाई को मार डाला। युगबाहु के मरने के बाद भी मदनरेखा को नहीं पा सका परंतु तीव्र काम राग के कारण उसका घोर कर्मबंध हुआ और अंत में जहरीले सर्प के काटने 45 For Personal & Private Use Only AAAAAA www.jainelibrary.org
SR No.004051
Book TitleJain Dharm Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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