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________________ शानदान DOOOOOणपण्णर मदगुणीजनों 4. शयण पुण्य :- पाट, पाटला, शय्या, बिछौना, चटाई आदि शयनीय सामग्री देने से जो पुण्य बंध होता है, वह शयण पुण्य है। 5. वस्त्र पुण्य :- सर्दी, गर्मी, वर्षा से पीडित व्यक्ति को इनसे रक्षा के लिए वस्त्रों का दान करने से जो पुण्य बंध होता है वह वस्त्र पुण्य है। 6. मन पुण्य :- मन से दूसरों की, गुणीजनों की भलाई चाहने से, गुणियों के प्रति तुष्टि - प्रमोद भावना रखने से मन पुण्य होता है। 7. वचन पुण्य :- वचनों द्वारा गुणीजनों का कीर्तन करने से उनकी प्रशंसा करने से तथा हित - मित - प्रिय वचन बोलने से वचन पुण्य होता है। 8. काय पुण्य :- रोगी, पीडित, दुखित एवं संतप्त व्यक्तियों की शरीर द्वारा सेवा करने से, अन्य काय पुण्य जीवों को साता पहुँचाने से, पराया दुःख दूर करने से गुणीजनों की सेवा - शुश्रुषा पर्युपासना करने से विनय पुर्वा को वन्दनाकाना जो पुण्य प्रकृति का बंध होता है वह काय पुण्य है। 9. नमस्कार पुण्य :- पंच परमेष्ठि आदि योग्य पात्र को नमस्कार करने से एवं सबके साथ विनम्र व्यवहार करने . . से जो पुण्य - प्राकृति का बंध होता है, वह नमस्कार 'पुण्य है। * पुण्य के दो भेद हैं :1. पुण्यानुबंधी पुण्य 2. पापानुबंधी पुण्य 1.पुण्यानुबंधी पुण्य :- जो पुण्य, पुण्य की परंपरा को चला सके, अर्थात् जिस पुण्य को भोगते हुए नवीन पुण्य का बंध हो वह पुण्यानुबंधी पुण्य है। उदाहः एक मानव को पूर्व भव के पुण्य से सभी प्रकार के सुख साधन प्राप्त हुए तथापि मोह से उसमें पागल न बनकर आत्मा हित के उद्देश्य से वह मुक्ति की अभिलाषा रखता है, पूर्व पुण्य का उपभोग करता हुआ नवीन पुण्यों का बंध करता है वह पुण्यानुबंधी पुण्य है। जैसे सुबाहुकुमार एवं भरत चक्रवर्ती आदि के पूर्वोपार्जित पुण्य से चक्रवर्तित्व पाया और फिर उससे भी श्रेष्ठ स्थिति मुक्ति प्राप्त की। BAnandPriPAP
SR No.004051
Book TitleJain Dharm Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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