SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वे सांसारिक कामभोगों के दलदल में फंस जाते हैं अथवा साधन विहीन व्यक्ति कामभोगों की प्राप्ति की पिपासा में सारी जिंदगी बिता कर इन परम दुर्लभ अंगों को पाने के अवसर खो देते हैं। उनकी पुनःपुनः दीर्घ संसार यात्रा चलती रहती है। मानव जीवन - एक प्रश्न प्रातःकाल सूर्य के उदय होते ही जिन्दगी का एक नया दिन शुरू होता है और सूर्यास्त होने तक वह दिन समाप्त हो जाता है। इस तरह प्रतिदिन आयु में से एक-एक दिन घटता जाता है। जन्म लेने के बाद से ही आयु क्षय का यह क्रम प्रारंभ हो जाता है, किन्तु अनेक प्रकार के कार्यभार से बढ़े हुए विभिन्न क्रिया-कलापों में लगे रहने के कारण इस व्यतीत हुए समय का पता नहीं लगता। ऐसे अवसर प्रायः प्रतिदिन आते हैं, जब मनुष्य किसी न किसी जीव का जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा, विपत्ति, रोग और शोक के कारुणिक एवं विचारप्रेरक दृश्य देखता है किन्तु हम कितने मदान्ध, अविवेकी और कामनाओं से ग्रस्त है कि यह सब कुछ आंखों से देखते हुए भी विवेक और विचार की आंखों से अंधे ही बने हुए है। मोह और सांसारिक प्रमाद में लिप्त मनुष्य घड़ी भर एकान्त में बैठकर इतना भी नहीं सोचता कि इस कौतूहलपूर्ण नरतनु में जन्म लेने का उद्देश्य क्या है ? हम कौन है ? कहां से आए हैं? और कहा जाना है ? किस दिशा में गति कर रहे हैं ? श्रीमद् राजचंदजी के शब्दों में कहा जाए तो - हूं कोण छू क्या थी थयो ? शुं स्वरूप छे मारुं खरूं? कोना सम्बन्धे वलगणा छे, राखुं के ए परिहरूं ? मानव के सामने जीवन के ये प्रश्न चिन्ह हैं- मैं कौन हूं, कहां से मैं मानव हुआ? मेरा असली स्वरूप क्या है ? मेरा संबंध किसके साथ है ? इस संबंध को मुझे रखना है या छोड़ना है ? मानवजीवन - परीक्षा के लिए चौरासी लाख जीव-योनियों में परिभ्रमण करने के बाद मनुष्य को अतिदुर्लभ मानव-जीवन मिला है। यह अवसर उसे अपनी जीवन यात्रा की परीक्षा देने के लिए मिला है। विद्यार्थी को सालभर पढ़ाई करने के बाद उसकी परीक्षा देनी पड़ती है और यह सिद्ध करना पड़ता है कि उसने पढ़ाई में पूरा श्रम किया है। यह प्रमाणित कर देने पर उसे उत्तीर्ण होने का सम्मान मिलता है और उसका लाभ भी। किन्तु जो छात्र परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो जाता है, उसके बारे में यही माना जाता है कि उसने पर्याप्त श्रम नहीं किया और दण्डस्वरूप उसे एक वर्ष तक पुनः वह उसी कक्षा में रह जाता है। ___ चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करके जीव को अपने को सुधारने और सन्मार्गगामी बनने की शिक्षा ग्रहण करनी पड़ती है। वह पढ़ाई पूरी होने पर उसे मनुष्य जीवन का एक अलभ्य अवसर परिक्षाकाल जैसा मिलता है। इसमें मनुष्य को यह सिद्ध करना पड़ता है कि उसने कितनी आत्मिक प्रगति की, अपने को कितना सुधारा, अपना दृष्टिकोण कितना परिमार्जित किया और उच्चभूमिका की ओर अथवा लक्ष्य की ओर कितना प्रयाण किया? मानव जीवन का प्रत्येक दिन मनुष्य के लिए एक-एक प्रश्न पत्र है। प्रतिदिन के प्रश्न पत्र में कई प्रश्न मानव छात्र के सामने आते हैं। जैसे उसने इस दुर्लभ मनुष्य भव को पाकर उसका कितना उपयोग किया? उसकी आत्मा को दूरगति में गिरते हुए को ऊपर उठाने के लिए कितना पुरुषार्थ किया? इत्यादि। ___ इसके उपरान्त भी जो-जो समस्याएं सामने आती है, वे भी एक-एक प्रश्न हैं। इन प्रश्नों को किस दृष्टिकोण से हल किया जा रहा है, महापुरुष या धर्मवीर उसे बहुत ही बारीकी से जांचते हैं। यदि आपका दृष्टिकोण पशुओं जैसा ही स्वार्थपरता और तृष्णा, वासना, कामना, की क्षुद्रता से परिपूर्ण रहा, तब तो आपको फिर चौरासी लाख योनियों की कक्षाओं में ही पड़े रहना होगा। यदि जीवनचर्या आदर्श रही और आचार-विचार की दृष्टि से अपनी alog AMARNAT701tonals
SR No.004050
Book TitleJain Dharm Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2010
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy