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________________ XXX5 कष्ट भगवान को हुआ होगा, किन्तु वे सर्वथा धीर बने रहे। उनका ध्यान तनिक भी नहीं डोला। ध्यान की सम्पूर्ति पर भगवान मध्यमा नगरी में भिक्षा हेतु जब सिद्धार्थ वणिक के यहां पहुंचे तो वणिक के वैद्य खरक ने इन शलाकाओं को देखकर भगवान द्वारा अनुभूत कष्ट का अनुमान किया और सेवाभाव से प्रेरित होकर उसने कानों से शलाकाओं को बाहर निकाला। उस समय भयंकर वेदना के कारण भगवान के मुख से एक भीषण चीख निकल पड़ी। गत जन्म में भगवान की आत्मा ने अज्ञान से बांधा हुआ पापकर्म अन्तिम भव में उदय आया। कर्म किसी को छोड़ता नहीं, और तदाकार बने हुए कर्मों का भोग करना ही पड़ता है। इसीलिए पाप कर्म बांधने के समय जागृत रहना नितान्त जरूरी है। साढे 12 वर्ष की साधना-अवधि में भगवान को होने वाला यह सबसे बड़ा उपसर्ग था। इसमें इन्हें अत्यधिक यातना भी सहनी पड़ी। संयोग की ही बात है कि उपसर्गों का आरंभ और समाप्ति दोनों ही ग्वाले के बैलों से संबंध रखने वाले प्रसंगों से हुई। आहार तथा निद्रा विजय :श्रमण भगवान महावीर दीर्घ तपस्वी थे। पूरे साधनाकाल में सिर्फ 350 दिन भोजन किया और निरन्तर कभी भोजन नहीं किया। उनकी कोई भी तपस्या दो उपवास से कम नहीं थी और उत्कृष्ट में उन्होंने निरन्तर छह मास तक का उपवास भी किया। उनकी तपश्चर्या सर्वथा निर्जल तथा ध्यान योग के साथ चलती थी। कल्पसूत्र तथा आचारांग के अनुसार तप की तालिका इस प्रकार है। तप का नाम तप की एक-एक तप के तप का नाम तप की एक-एक तप के संख्या कुल दिन संख्या कुल दिन छह मासिक तप 1 180 दिन का एक तप मासिक तप ___12 30 दिन का एक तप 5 दिन कम छह 2 175 दिन का एक तप पाक्षिक तप 72 15 दिन का एक तप मासिक तप चातुर्मासिक तप 9 120 दिन का एक तप भ्रदप्रतिमा 12 2 दिन का एक तप तीन मासिक तप 2 90 दिन का एक तप महाभद्र प्रतिमा 1 4 दिन का एक तप सार्धद्विमासिक तप 2 75 दिन का एक तप सर्वतोभद्र प्रतिमा 1 10 दिन का एक तप द्विमासिक तप 6 60 दिन का एक तप सोलह दिन का तप1 16 दिन का एक तप सार्धमासिक तप 2 45 दिन का एक तप अष्टम भक्त तप 12 3 दिन का एक तप षष्ठ भक्त तप 229 2 दिन का एक तप इस प्रकार 11 वर्ष 6 महिने और 25 दिन तपस्या के तथा पहले पारणे सहित सर्व 350 पारणे हुए। कुल 12 वर्ष 6 महिने 15 दिन भगवान छद्मस्थ अवस्था में रहे, इतने काल में मात्र एक मुहूर्त प्रमाद आया अर्थात् मात्र 48 मिनट नींद ली। शुक्लध्यान निमग्न भगवान को केवलज्ञान-त्रिकालज्ञान की प्राप्ति वैशाख शुक्ला दशमी के शुभ दिन श्रमण भगवान महावीर के साधनाकाल के 12 वर्ष 5 माह 15 दिन व्यतीत हो चुके थे। प्रभु महावीर विहार करते हुए जंभियग्राम नगर के बाहर ऋजु बालिका नदी के तट पर एक उद्यान में शाल वृक्ष के नीचे गोदूहिका या उकडु आसन में ध्यानावस्थित हुए। तब प्रभु के चार घनघाति कर्म (ज्ञानावर्णीय, lain Education International For Rer 36 PM
SR No.004050
Book TitleJain Dharm Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2010
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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