________________
सीखने-समझने के लिए उसका व्याकरण का ज्ञान आवश्यक है । व्याकरण की विभिन्न इकाइयों में से एक इकाई 'कृदन्त' है। साहित्य को समझने के लिए कृदन्तों का ज्ञान आवश्यक है। इस पुस्तक में कृदन्तों का विवेचन किया गया है। आशा है अपभ्रंश के जिज्ञासु पाठक लाभान्वित होंगे।
पुस्तक - प्रकाशन के लिए अपभ्रंश साहित्य अकादमी के विद्वानों विशेषतया श्रीमती सीमा ढींगरा के आभारी हैं, जिन्होंने बड़े परिश्रम से अपभ्रंश महाकवि स्वयंभू के 'पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्तं - संकलन' तैयार किया है। अतः वे हमारी बधाई की पात्र हैं ।
पृष्ठ - संयोजन के लिए फ्रेण्ड्स कम्प्यूटर्स एवं मुद्रण के लिए जयपुर प्रिण्टर्स धन्यवादार्ह हैं।
नगेन्द्र कुमार जैन प्रकाशचन्द्र जैन डॉ. कमलचन्द सोगाणी मंत्री संयोजक प्रबन्धकारिणी कमेटी
अध्यक्ष
जैनविद्या संस्थान समिति
दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी
श्रुत पंचमी
ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी, वीर निर्वाण सं. 2538
26.05.2012
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org