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प्रेरणार्थक सम्बन्धक कृदन्त के वाक्य-प्रयोग - 1. विविह–विताण-णिवहु वन्धावेवि दसाणण थिउ । 14/9/2
- विविध वितानों का समूह बन्धवाकर दशानन स्थित हुआ। 2. कोक्कावेवि णरवइ पवर णर भेरि पयाणउ। 18/8/5
– राजा ने श्रेष्ठ लोगों को बुलवाकर भेरि बजवा दी। सा कडउ घडावेवि करे छुहइ। - 19/2/2
- वह कड़े घड़वाकर हाथ में पहनती है। 4. गउ वे वि चडावेवि सो णवर तहिं। । 19/2/9
- दोनों को चढाकर वह केवल वहाँ गया। 5. एत्तहे वि खर-दूसण मेल्लावेप्पिणु सो णिय–णयरु पईसइ ।
19/12/1 - यहाँ पर भी खर दूषण को मुक्त करवाकर वह अपने नगर में प्रवेश करता है। कोक्कावेप्पिणु वरुणु दसासें पुज्जिउ । 20/11/3 - दशानन के द्वारा वरुण को बुलवाकर सम्मान किया गया। गयण-मग्गे पुणु भुअहिँ भमाडेवि।
25/15/8 - फिर बाहुओं के द्वारा घुमाकर आकाशमार्ग में छोड़ दिया गया। 8. अंजणाए जणणेण गय विमुक्क भामेप्पिणु। 46/8/1
- अंजना के पिता के द्वारा घुमाकर गदा मारी गई। प्रेरणार्थक वर्तमान कृदन्त के प्रयोग - 9. दस कामावत्थउ दक्खवन्तु भामण्डलु थिउ। 22/5/3
- दस कामावस्थाओं को दिखाता हुआ भामण्डल स्थित हुआ। 10. पडिउ जडाइ रणे जाणइ-हरि-वलहुँ तिण्हि मि चित्तइँ पाडन्तउ।
38/13/घ. - जटायु रण में जानकी, लक्ष्मण और राम तीनों के चित्त को
गिराता हुआ गिर पड़ा। 98]
[पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त-संकलन
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