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________________ 49. पणतीससोलछप्पणचउद्गमेगं च जवह ज्झाएह। परमेट्ठिवाचयाणं अण्णं च गुरूवएसेण।। पणतीससोलछप्पण- [(पणतीससोलछप्पणचउदुगं) चउदुगमेगं +(एगं)] [(पणतीस) वि-(सोल) वि- पैंतीस, सोलह, (छ) वि-(प्पण) वि- छह, पाँच, चार, (चउ) वि-(दुग) 2/1 वि] दो से युक्त और एगं (एग) 2/1 वि एक को अव्यय और जवह (जव) विधि 2/2 सक जपो ज्झाएह (ज्झाअ) विधि 2/2 सक ध्याओ परमेट्ठिवाचयाणं [(परमेट्ठि)-(वाचय) परमेष्ठी का (अर्थ) 6/2 वि] बतलाने वाले अण्णं (अण्ण) 2/1 सवि अन्य को अव्यय गुरूवएसेण [(गुरु) + (उवएसेण)] [(गुरु)-(उवएस) 3/1] गुरु के उपदेश से अन्वय- परमेट्ठिवाचयाणं पणतीससोलछप्पणचउदुगमेगं जवह ज्झाएह च गुरूवएसेण अण्णं च। अर्थ- परमेष्ठी का (अर्थ) बतलाने वाले (मंत्रों का) अर्थात् पैंतीस, सोलह, छह, पाँच, चार, दो से युक्त और एक (अक्षररूप मंत्रपदों) को जपो, ध्याओ और गुरु के उपदेश से अन्य को भी (जपो, ध्याओ)। सोलस-सोल यहाँ स का लोप हुआ है। 2. ज्झा--ज्झाअ (अकारान्त धातुओं के अतिरिक्त अन्य) स्वरान्त धातुओं में विकल्प से अ जोड़ा जाता है। 1. द्रव्यसंग्रह (61) www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004046
Book TitleDravyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2013
Total Pages120
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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