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________________ 36. जह कालेण तवेण य भुत्तरसं कम्मपुग्गलं जेण। भावेण सडदि णेया तस्सडणं चेदि णिज्जरा दुविहा।। भुत्तरसं जेण जह कालेण अव्यय उचित समय आने पर तवेण (तव) 3/1 तप द्वारा अव्यय और [(भुत्त) भूक अनि-(रस) 1/1] भोगा हुआ रस कम्मपुग्गलं [(कम्म)-(पुग्गल) 1/1] कर्म पुद्गल (ज) 3/1 सवि जिससे भावेण (भाव) 3/1 भाव से सडदि (सड) व 3/1 अक विलीन हो जाता है णेया (णेय) विधिकृ 1/1 अनि समझी जानी चाहिये तस्सडणं (तस्सडण) 1/1 उसका नष्ट चेदि [(च)+ (इदि)] च (अ) = और और इदि (अ) = अतः अतः *णिज्जरा(मूलशब्द) (णिज्जरा) 1/1 निर्जरा (दुविह) 1/2 वि दो प्रकार की दुविहा अन्वय- जेण भावेण भुत्तरसं सडदि य जह कालेण च तवेण कम्मपुग्गलं तस्सडणं इदि णिज्जरा दुविहा णेया। अर्थ- (आत्मा के) जिस (वीतराग) भाव से (मिथ्यात्व अवस्था में) भोगा हुआ रस विलीन हो जाता है (वह) (भावनिर्जरा) (है) और उचित समय आने पर और तप द्वारा उस (आत्मा) का कर्मपुद्गल नष्ट (होता है) (वह) (द्रव्यनिर्जरा) (है)। अतः निर्जरा दो प्रकार की समझी जानी चाहिये। प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517) द्रव्यसग्रह Jan Education International For Personal & Private Use Only (47) www.jainelibrary.org
SR No.004046
Book TitleDravyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2013
Total Pages120
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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