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31. णाणावरणादीणं जोग्गं जं पुग्गलं समासवदि।
दव्वासवो स णेओ अणेयभेओ जिणक्खादो ।
णाणावरणादीणं
[(णाणावरण)+ (आदीणं)] [(णाणावरण)-(आदि) 6/2] ज्ञानावरणादि (कर्मों)
जोग्गं
जो
पुग्गलं
समासवदि
(जोग्ग) 1/1 वि
योग्य (ज) 1/1 सवि (पुगल) 1/1
पुद्गल [(सम)+(आसव)] सम (अ) = साथ-साथ साथ-साथ (आसव) व 3/1 अक आता है (दव्वासव) 1/1
द्रव्यास्रव (त) 1/1 सवि
वह (णेअ) विधिकृ 1/1 अनि समझा जाना चाहिये {[(अणेय)-(भेअ)1/1] वि} अनेक भेदवाला [(जिण)-(अक्खाद) जिनेन्द्रदेव के द्वारा भूकृ 1/1 अनि] कहा गया है
दव्वासवो
णेओ अणेयभेओ जिणक्खादो
अन्वय- णाणावरणादीणं जोग्गं जं पुग्गलं समासवदि स दव्वासवो णेओ जिणक्खादो अणेयभेओ।
अर्थ- ज्ञानावरणादि (कर्मों) के योग्य जो पुद्गल (भाव के) साथ-साथ आता है, वह द्रव्यास्रव समझा जाना चाहिये। (वह) जिनेन्द्रदेव के द्वारा अनेक भेदवाला कहा गया है।
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द्रव्यसंग्रह
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