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________________ 26. एयपदेसो वि अणू णाणाखंधप्पदेसदो होदि। ___ बहदेसो उवयारा तेण य काओ भणंति सव्वण्ह।। होदि एयपदेसो {[(एय)-(पदेस) 1/1] वि} एक प्रदेश अव्यय अणू . (अणु) 1/1 परमाणु णाणाखंधप्पदेसदो [(णाणा) वि-(खंध)- अनेक स्कंध प्रदेश से (प्पदेस) 5/1] पंचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय (हो) व 3/1 अक होता है । बहुदेसो (बहुदेस) 1/1 वि बहुत प्रदेशी उवयारा (उवयार) 5/1 व्यवहार से अव्यय इसलिये अव्यय पादपूर्ति (काअ) 1/1 काय भणंति (भण) व 3/2 सक कहते हैं *सव्वण्हु (मूल शब्द)(सव्वण्हु) 1/ वि सर्वज्ञ देव तेण य काओ अन्वय- एयपदेसो अणू वि णाणाखंधप्पदेसदो बहुदेसो होदि तेण य सव्वण्ह उवयारा काओ भणंति ।। अर्थ- एक प्रदेश (पुद्गल) परमाणु भी अनेक स्कंध प्रदेश से बहुत प्रदेशी होता है। इसलिये सर्वज्ञ देव व्यवहार से (परमाणु को) काय कहते हैं। प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517) Ahl Jalutation International For Personal & Private Use Only द्रव्यसग्रह www.jainelibrary.org
SR No.004046
Book TitleDravyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2013
Total Pages120
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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