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________________ 11. पुढविजलतेयवाऊ वणप्फदी विविहथावरेइंदी। विगतिगचदुपंचक्खा तसजीवा होंति संखादी।। वायु पुढविजलतेयवाऊ [(पुढवि)-(जल)-(तेय) पृथ्वी, जल, तेज, -(वाउ) 1/1] वणप्फदी (वणप्फदि) 1/1 वनस्पति विविहथावरेइंदी [(विविहथावर) + (एअ)+ (इंदी)] [(विविह) वि-(थावर) अनेक प्रकार के - (एअ) वि-(इंदि) 1/1] स्थावर एक इन्द्रिय विगतिगचदुपंचक्खा [(विगतिगचदुपंच)+(अक्खा)] [(विग) वि-(तिग) वि- दो (इन्द्रिय) से गमन (चदु) वि-(पंच) वि- करनेवाले, तीन (अक्ख) 5/1] (इन्द्रिय) से गमन करनेवाले, चार, और पाँच इन्द्रियों से (गमन करनेवाले) तसजीवा (तसजीव) 1/2 त्रस जीव होंति (हो) व 3/2 अक होते हैं संखादी [(संख)+(आदी)] [(संख)-(आदि) 1/] शंख आदि अन्वय- विविहथावरेइंदी पुढविजलतेयवाऊ वणप्फदी विगतिगचदुपंचक्खा तसजीवा होंति संखादी। । अर्थ- अनेक प्रकार के स्थावर एक इन्द्रिय (जीव होते हैं) (जैसे) पृथ्वी, जल, तेज, वायु, (और) वनस्पति। दो (इन्द्रिय) से गमन करनेवाले, तीन (इन्द्रिय) से गमन करनेवाले, चार (और) पाँच इन्द्रियों से (गमन करनेवाले) त्रस जीव होते हैं (जैसे) शंख आदि। द्रव्यसग्रह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004046
Book TitleDravyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2013
Total Pages120
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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