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________________ ८१० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ भावसंग्रह (वामदेव) १७९, ७८८ मल्लीकुमारी, मल्ली ६६५ भावार्थदीपिका (भगवती-आराधना की महाकवि स्वयम्भू (संकटाप्रसाद उपाध्याय) टीका) ५६ ७१७ भाषाएँ (महाभाषाएँ और क्षुद्रभाषाएँ) ४५१ ।। महापुराण (आ. जिनसेन) ४५१ भिक्खु-भिक्खुणियाँ (श्वे०) २८३ महाप्रत्याख्यान (श्वे० ग्रन्थ) ६९ भिक्षुणी २८३, २८५ महाभारत ७५ भिक्षुप्रतिमाएँ १८१, १८२ महाराष्ट्रीप्राकृत ५३९ भुक्त्युपसर्गाभाव (केवली) २९३ महाविकृतियाँ ५१ भूतपूर्वनय, भूतार्थग्राहीनय, भूतप्रज्ञापननय, महावीर के पूर्वभव ७५९ भूतग्राहीनय ७०६-७०८ महावीरचरिउ (रइधू) ७०३ भूतबलि ७४१ महावीर जैन विद्यालय रजतमहोत्सव-ग्रन्थ भूतार्थनय ७०८ ४९९ महाव्रतोपदेशक सूत्र ८ एम० ए० ढाकी (प्रोफेसर) ४१३, ४५१ महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य (पं०, प्रो०) ३७७, एम० डी० वसन्तराज (डॉ०) २३ ५४१, ५४२, ५४४, ५४५ मगधदेव ७२९ मागधीभाषा में उपदेश ७२९ । मघवा चक्रवर्ती ६४९ माणिक्यनन्दी ६३ मण्डपदुर्ग १६६ मानतुङ्गाचार्य और उनके स्तोत्र मदनूर संस्कृत शिलालेख ६२४ __ (मधुसूदन ढाकी, जितेन्द्र शाह) मनुष्यजाति का एकत्व ६८१ ४५२, ४५४ मयूरकथानक (बृ. क. को.) ७५२ मानसिक अमृताहार ७३० मरणविभक्ति ६९, ४०६, ४०७ मायाचार ४२ मरणविभक्ति (मूलाचारगत) २४१ मासकल्प (स्थितिकल्प) ६ मरणसमाही (श्वे. ग्रन्थ) ६७, ६९ मित्रनन्दिगणी ६० मरीचि-कथानक (बृ.क.को.) ७५९ मुनिजनचिन्तामणि २२० मरुदेवी के सोलह स्वप्न ७१८, ७१९ मुनिपुंगव ६७०, ६७२ मल्लवादी (सन्मतितर्क के टीकाकार, श्वे०) । मूर्छा, राग, इच्छा, ममत्व-एकार्थक ३९, ५०१, ५०२ २८५ मल्लिनाथ, मल्लि ४३६-४३८, ६८९ मूलगुण २८ (दिगम्बर मुनि) ४९, १९८, मल्लिषेणप्रशस्ति ४९३ १९९, २०२, ७६५, ७७६, ७७८, मल्लितीर्थंकर ४२ ७८४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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