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________________ ७३८ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ अ०२३ इसी क्रम के अनुसार पूतिगन्धा को पहले रोहिणीव्रत एवं श्राविकाव्रत के फलस्वरूप अच्युतस्वर्ग के देव की महादेवी और उसके बाद राजा अशोक की रोहिणी नामक महारानी होते हुए बतलाया गया है। तत्पश्चात् आर्यिकादीक्षा लेकर दुष्कर तप एवं सल्लेखनाविधि से देहत्याग करने पर वह देवगति एवं पुरुषवेद का बन्ध कर अच्युतस्वर्ग में दिव्यबुन्दीधर देव होती है। इस तरह वह सम्यग्दृष्टि देव की उस भूमिका में आ जाती है, जहाँ से च्युत होकर उसका मनुष्यगति में पुरुष होना अनिवार्य है। इससे उसके लिए दैगम्बरी दीक्षा लेकर मुक्ति प्राप्त करने का द्वार खुल जाता है। इस कथा का वर्णन 'अशोकरोहिणीकथानक' के निम्नलिखित श्लोकों में किया गया पूर्वोक्तपूतिगन्धापि श्रावकव्रतभूषिता। उपोष्य रोहिणी भद्रा चक्रे कालं समाधिना॥ ४५९॥ पल्योपमानि भुञ्जाना सुखं पञ्चदशानि सा। अच्युतस्यैव देवस्य महादेवी बभूव च॥ ४६०॥ पूतिगन्धाचरी देवी या तवासीन्मनः प्रिया। सा स्वर्गाद्गलिता भूमिमवतीर्णायुषः क्षये॥ ४६५॥ श्रीमदङ्गाख्यदेशस्थ-चम्पायां पुरि रूपिणी। मघोनस्तनया जाता श्रीमत्यां रोहिणी नृप॥ ४६६॥ रोहिणी च महादेवी हित्वा सर्वपरिग्रहम्। वासुपूज्यं जिनं नत्वा सुमत्यन्ते तपोऽग्रहीत्॥ ५८२॥ नानातपो विधायैषा सामान्यस्त्रीसु दुष्करम्। सल्लेखनविधिं चक्रे रोहिणी कर्महानये॥ ५८३॥ ततः स्त्रीत्वं समादाय कृत्वा कालं समाधिना। कल्पेऽच्युते बभूवासौ दिव्यबुन्दीधरः सुरः॥ ५८४॥ लभते। पश्चात् परमसमाधिसामग्रीसद्भावे मोक्षं च लभते।" तात्पर्यवृत्ति / प्रवचनसार १/ ११/ पृ. १२। ख- "तीर्थङ्करादिपुराणजीवादिनवपदार्थप्रतिपादकागमपरिज्ञानसहितस्य तद्भक्तियुक्तस्य च यद्यपि तत्काले पुण्यास्रवपरिणामेन मोक्षो नास्ति तथापि तदाधारेण कालान्तरे निरास्रव शुद्धोपयोगपरिणामसामग्रीप्रस्तावे भवति। तात्पर्यवृत्ति/ पंचास्तिकाय/गा. १५४/ पृ. २२३ । ग- "तेन कारणेन स तु भेदज्ञानी स्वकीयगुणस्थानानुसारेण परम्परया मुक्तिकारणभूतेन तीर्थङ्करनामकर्म प्रकृत्यादिपुद्गलरूपेण विविधपुण्यकर्मणा बध्यते।" तात्पर्यवृत्ति / समयसार / गा.१७२/ पृ.२३९। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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