SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 773
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वाविंश अध्याय स्वयम्भूकृत पउमचरिउ प्रथम प्रकरण पउमचरिउ के दिगम्बरग्रन्थ होने के प्रमाण पं. नाथूराम जी प्रेमी ने लिखा है - "स्वयंभुदेव ( वि० सं० ७३४ से ८४० के बीच) ने अपने वंश, गोत्र आदि का कोई उल्लेख नहीं किया । इसी तरह अन्य जैन ग्रन्थकर्त्ताओं के समान अपने गुरु या सम्प्रदाय की कोई चर्चा नहीं की। परन्तु पुष्पदन्त के महापुराण के 'स्वयंभू' शब्द के टिप्पण में उन्हें आपुलीसंघीय बतलाया है । ('सयंभुः पद्धडीबद्धकर्त्ता आपुलीसंघीय : ' - म. पु. / पृ. ९ ) । इसलिए वे यापनीयसम्प्रदाय के अनुयायी जान पड़ते हैं। पर उन्होंने पउमचरिउ के प्रारम्भ में लिखा है कि यह रामकथा वर्द्धमान भगवान् के मुखकुहर से विनिर्गत होकर इन्द्रभूति गणधर और सुधर्मा स्वामी आदि के द्वारा चली आई है और रविषेणाचार्य के प्रसाद से मुझे प्राप्त हुई है।" (जै. सा. इ./द्वि.सं./पृ. १९७-१९८)। यहाँ पर शब्द का प्रयोग कर प्रेमी जी ने उक्त टिप्पण से असहमति व्यक्त की है और कथावतार की दिगम्बरपद्धति का उल्लेख कर 'पउमचरिउ' के दिगम्बरग्रन्थ होने का संकेत दिया है। श्रीमती डॉ० कुसुम पटोरिया लिखती हैं – " स्वयंभू के सम्प्रदाय के विषय में डॉ० संकटाप्रसाद उपाध्याय का कथन है कि अधिक निश्चित जानकारी के अभाव में चाहे स्वयंभू के यापनीय - संघीय होने के विषय में कोई अन्तिम निर्णय न हो सके, पर अन्तःसाक्ष्यों के आधार पर उन्हें दिगम्बरसम्प्रदाय का मानने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए ।' "१ किन्तु उक्त विदुषी ने 'पउमचरिउ' ग्रन्थ के सम्पादक डॉ. एच. सी. भायाणी के मत का उल्लेख करते हुए लिखा है- " श्री एच० सी० भायाणी भी यही लिखते हैं कि यद्यपि इस सन्दर्भ में हमें स्वयंभू की ओर से कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष वक्तव्य १. संकटाप्रसाद उपाध्यायकृत 'महाकवि स्वयंभू' पृ. २०१ / भारत प्रकाशन मन्दिर / अलीगढ़ १९६९ ई. ( यापनीय और उनका साहित्य / पृ. १५४) । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy