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________________ सप्तम प्रकरण यापनीयपक्षधर हेतुओं की असत्यता एवं हेत्वाभासता माननीय डॉ० ए० एन० उपाध्ये और उनका अनुसरण करनेवाली श्रीमती डॉ० कुसुम पटोरिया ने सिद्धसेनकृत सन्मतिसूत्र की यापनीयग्रन्थ के रूप में पहचान की है । किन्तु उनके द्वारा उपस्थापित हेतु भी या तो असत्य हैं या हेतु की परिभाषा में नहीं आते। डॉ० उपाध्ये ने 'सिद्धसेन का न्यायावतार और अन्य कृतियाँ' नामक ग्रन्थ की प्रस्तावना में १५४ उन हेतुओं की चर्चा की है। दोनों ग्रन्थकारों के हेतुओं को यहाँ यापनीय-पक्ष शीर्षक के नीचे दिखलाया जा रहा है और दिगम्बरपक्ष शीर्षक के अन्तर्गत उनकी असत्यता या हेत्वाभासता प्रदर्शित की जा रही है। १ यापनीयपक्ष डॉ० उपाध्ये – श्वेताम्बराचार्य हरिभद्रसूरि ने सन्मतिसूत्रकार सिद्धसेन के लिए श्रुतकेवली विशेषण का प्रयोग किया है। १५५ आचार्यों के लिये इस विशेषण का प्रयोग यापनीयपरम्परा में मिलता है, जैसे यापनीय आचार्य पाल्यकीर्ति शाकटायन ने अपने व्याकरणग्रन्थ की समाप्ति पर लिखा है - " इति श्रीश्रुतकेवलिदेशीयाचार्यस्य शाकटायनस्य कृतौ शब्दानुशासने ।" इससे सिद्ध होता है कि सिद्धसेन यापनीय थे। दिगम्बरपक्ष इस उदाहरण से तो यापनीय आचार्यों के साथ श्रुतकेवलिदेशीय विशेषण का प्रयोग किया जाना सिद्ध होता है न कि श्रुतकेवली का। डॉ० सागरमल जी का कथन है कि श्वेताम्बरपरम्परा में भी प्राचीन आचार्यों के लिए 'श्रुतकेवली' विशेषण का प्रयोग होता था । (जै.ध.या.स./ पृ. २३२ ) । इसलिए इस उभयपक्षी विशेषण के आधार पर न तो वे श्वेताम्बर सिद्ध हो सकते हैं, न यापनीय । उभयपक्षी होने से यह हेतु नहीं, हेत्वाभास है। मेरे विचार से हरिभद्रसूरि ने सन्मतिसूत्रकार सिद्धसेन को श्रुतकेवली के १५४. Siddhasena's Nyāyāvatār and other works, Introduction, p. Xiii to ZViii. (जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय / पृ. २३२-२३७)। १५५. भण्णइ एगंतेणं अम्हाणं कम्मवायणो इट्ठो । ण णो सहाववाओ सुअकेवलिणा जओ भणियं ॥ १०४७ ॥ आयरियसिद्धसेणेण सम्मईए प इट्ठिअजसेणं । दूसमणिसादिवागर कप्पत्तणओ तदक्खेणं ॥ १०४८ ॥ पञ्चवस्तु । ( श्रीमती डॉ. कुसुम पटोरिया : यापनीय और उनका साहित्य / पृ. १४१ ) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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