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________________ ५५० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ अ०१८ / प्र०३ सर्वार्थसिद्धि - यद्यपि कथंचिद् व्यपदेशादिभेदहेत्वापेक्षया द्रव्यादन्ये ( गुणाः), तथापि तदव्यतिरेकात्तत्परिणामाच्च नान्ये। (५ / ४२)। "यहाँ द्रव्य और गुणों (पर्यायों) का अन्यत्व तथा अनन्यत्व बतलाते हुए, आ० पूज्यपाद ने स्वामी समन्तभद्र की उक्त दोनों ही कारिकाओं के आशय को अपनाया है और ऐसा करते हुए उनके वाक्य में कितना ही शब्दसाम्य भी आ गया है, जैसा कि तदव्यतिरेकात् और परिणामाच्च पदों के प्रयोग से प्रकट है। इसके सिवाय, कथंचित् शब्द न सर्वथा का, द्रव्यादन्य पद नानात्व का नान्य शब्द ऐक्य का, व्यपदेश शब्द संज्ञा का वाचक है तथा भेदहेत्वपेक्षया पद भेदात्, विशेषात् पदों का समानार्थक है और आदि शब्द संज्ञा से भिन्न शेष संख्या-लक्षण-प्रयोजनादि भेदों का संग्राहक है। इस तरह शब्द और अर्थ दोनों का साम्य पाया जाता है। आप्तमीमांसा - उपेक्षा फलमाद्यस्य शेषस्यादानहानधीः। पूर्वा वाऽज्ञाननाशो वा सर्वस्यास्य स्वगोचरे॥ १०२॥ सर्वार्थसिद्धि - ज्ञस्वभावस्यात्मनः कर्ममलीमसस्य करणालम्बनादर्थनिश्चये प्रीतिरुपजायते, सा फलमित्युच्यते। उपेक्षा अज्ञाननाशो वा फलम्। रागद्वेषयोरप्रणिधानमुपेक्षा अन्धकारकल्पाज्ञाननाशो वा फलमित्युच्यते। (१/१०/१७० / पृ.७०)। "यहाँ इन्द्रियों के आलम्बन से अर्थ के निश्चय में जो प्रीति उत्पन्न होती है, उसे प्रमाणज्ञान का फल बतलाकर 'उपेक्षा अज्ञाननाशो वा फलम्' यह वाक्य दिया है, जो स्पष्टतया आप्तमीमांसा की उक्त कारिका का एक अवतरण जान पड़ता है और इसके द्वारा प्रमाणफल-विषय में दूसरे आचार्य के मत को उद्धृत किया गया है। कारिका में पड़ा हुआ पूर्वा पद भी उसी उपेक्षा फल के लिये प्रयुक्त हुआ है, जिससे कारिका का प्रारम्भ है। स्वयंभूस्तोत्र - नयास्तवेष्टा गुणमुख्यकल्पतः॥ ६२॥ आप्तमीमांसा - निरपेक्षा नया मिथ्याः सापेक्षा वस्तु तेऽर्थकृत्॥ १०८॥ युक्त्यनुशा. - मिथोऽनपेक्षाः पुरुषार्थहेतु शा न चांशी पृथगस्ति तेभ्यः। परस्परेक्षाः पुरुषार्थहेतुर्दृष्टा नयास्तद्वदसिक्रियायाम्॥५०॥ Jain Education Intemational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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