________________
अ०१७ / प्र०१
तिलोयपण्णत्ती / ४५५ से बहुत प्रभावित हैं, न केवल विचार-धारा से अपितु उनकी भाषा एवं शैली से भी। (देखिये, अध्याय १० / प्रकरण १ / शीर्षक ५.२)।
तिलोयपण्णत्ती में प्रतिपादित ये सभी सिद्धान्त एवं कुन्दकुन्द की गाथाओं का संग्रहण यापनीयमत के विरुद्ध हैं। अतः इन प्रमाणों से तिलोयपण्णत्ती का यापनीयग्रन्थ होना असिद्ध हो जाता है और सिद्ध होता है कि यह दिगम्बरपरम्परा का ग्रन्थ है।
Jain Education Interational
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org