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________________ ४५० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ अ०१७ / प्र०१ ___तात्पर्य यह है कि विदेहक्षेत्र में पहला, चौथा, पाँचवाँ, छठा, सातवाँ और तेरहवाँ, ये छह गुणस्थान निरन्तर पाये जाते हैं। शेष गुणस्थान सान्तर हैं। अतः जघन्यतः ये छह गुणस्थान ही हमेशा उपलब्ध होते हैं। सव्वेसुं भोगभुवे दो गुणठाणाणि सव्वकालम्मि। दीसंति चउ-वियप्पं सव्व-मिलिच्छम्मि मिच्छत्तं॥ ४/२९८२॥ अनुवाद-"सब भोगभूमिजों में सदा दो गुणस्थान (मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि) तथा उत्कृष्टरूप से चार गुणस्थान रहते हैं। सब म्लेच्छखण्डों में एक मिथ्यात्व गुणस्थान ही रहता है।" विजाहरसेढीए तिगुणट्ठाणाणि सव्वकालम्मि। पणगुणढाणा दीसइ छंडिदविजाण चोहसं ठाणं॥ ४/२९८३॥ अनुवाद-"विद्याधर-श्रेणियों में सर्वदा तीन गुणस्थान (मिथ्यादृष्टि, असंयत और देशसंयत) तथा (उत्कृष्ट रूप से) पाँच गुणस्थान होते हैं। विद्याएँ छोड़ देने पर वहाँ चौदह गुणस्थान भी होते हैं।" ते वेदत्तयजुत्ता अवगदवेदा वि केइ दीसंति। सयलकसाएहि जुदा अकसाया होति केइ णरा॥ ४/२९८६॥ अनुवाद-"वे मनुष्य तीनों वेदों से युक्त होते हैं। परन्तु कोई मनुष्य (अनिवृत्तिकरण के अवेदभाग से लेकर) वेदरहित भी होते हैं। कषाय की अपेक्षा भी वे समस्त कषायों से युक्त होते हैं, किन्तु कोई (ग्यारहवें गुणस्थान से) कषायरहित भी होते हैं।" . इस प्रकार तिलोयपण्णत्ती में मोक्षमार्ग चतुर्दश-गुणस्थानात्मक कहा गया है, किन्तु श्वेताम्बर एवं यापनीय सम्प्रदायों में परतीर्थिक (जैनेतरलिंगी) भी मुक्ति का पात्र माना गया है अर्थात् मिथ्यादृष्टि-गुणस्थान में भी मोक्षप्राप्ति स्वीकार की गई है, जिससे सिद्ध है कि इन परम्पराओं में मोक्षमार्ग की चतुर्दशगुणस्थानात्मकता मान्य नहीं है। यह सैद्धान्तिक विरोध भी तिलोयपण्णत्ती को दिगम्बरग्रन्थ सिद्ध करता है। १३ दिव्यध्वनि सर्वभाषात्मक श्वेताम्बर-आगमों में कहा गया है कि भगवान् महावीर के उपदेश की भाषा अर्धमागधी थी-"भगवं च णं अद्धमागहीए भासाए धम्ममाइक्खइ।"१८ १८. समवायांग ३४/२२ (डॉ० सागरमल जैन अभिनन्दनग्रन्थ / पृ. २१)। Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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