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अ०१७/प्र०१
तिलोयपण्णत्ती / ४४७ पण्डित जी आगे लिखते हैं-"तिलोयपण्णत्ती से 'बृहत्क्षेत्रसमास' में द्वीपों का अवस्थान भी भिन्न रूप से बतलाया है। यह केवल ग्रन्थगत भेद नहीं है, किन्तु परम्परागत भेद है। दिगम्बरपरम्परा के ग्रन्थों में तिलोयपण्णत्ती के अनुसार कथन है और श्वेताम्बरपरम्परा के ग्रन्थों में बृहत्क्षेत्र के अनुसार कथन मिलता है।" (जै.सा.इ./भा./ पृ.२/ ६५-६६)।
तिलोयपण्णत्ती का यह वैशिष्ट्य भी उसके दिगम्बरग्रन्थ होने का प्रमाण है।
काल की स्वतंत्रद्रव्य के रूप में मान्यता श्वेताम्बरमत में काल स्वतन्त्र द्रव्य नहीं माना गया है। दिगम्बरमान्य तत्त्वार्थसूत्र में जहाँ 'कालश्च' (५/३९) सूत्र है, वहाँ श्वेताम्बरमान्य तत्त्वार्थसूत्र में 'कालश्चेत्येके' (५/३८) पाठ है, जिसका अर्थ है-'कोई आचार्य काल को भी द्रव्य कहते हैं।' इससे यह घोतित किया गया है कि सूत्रकार स्वयं काल को स्वतंत्र द्रव्य नहीं मानते। उसके स्वतंत्र द्रव्य होने की मान्यता किन्हीं अन्य आचार्यों की है। यहाँ स्पष्टतः दिगम्बराचार्यों की ओर संकेत किया गया है। प्रसिद्ध श्वेताम्बर विद्वान् पं० सुखलाल जी संघवी ने ऐसा ही अभिप्राय अभिव्यक्त किया है। उन्होंने लिखा है-"काल किसी के मत से वास्तविक द्रव्य है, ऐसा सूत्र (त. सू./श्वे./५ /३८) और उसके भाष्य का वर्णन दिगम्बरमत (त.सू.५/३९) के विरुद्ध है।" (त.सू./वि.स./प्रस्ता./ पृ. १७)।
माननीय पं० फूलचन्द्र जी शास्त्री लिखते हैं-"तत्त्वार्थभाष्यकार ऐसा करते ('कालश्चेत्येके' सूत्र लिखते) हुए भी अन्य आचार्यों के मत से काल को द्रव्यरूप से स्वीकार करते हैं, स्वयं नहीं। यही कारण है कि उन्होंने तत्त्वार्थभाष्य में जहाँजहाँ द्रव्यों का उल्लेख किया है, वहाँ-वहाँ पाँच अस्तिकायों का ही उल्लेख किया है और लोक को पाँच अस्तिकायात्मक बतलाया है।५ श्वेताम्बर-आगमसाहित्य में छह द्रव्यों का निर्देश किया है अवश्य और एक स्थान पर तो तत्त्वार्थभाष्यकार भी छह द्रव्यों का उल्लेख करते हैं,१६ परन्तु इससे वे काल को द्रव्य मानते ही हैं, यह नहीं कहा जा सकता। कारण यह है कि श्वेताम्बर-आगमसाहित्य में जहाँ भी छह द्रव्यों का नामनिर्देश किया है, वहाँ काल द्रव्य के लिए अद्धासमय शब्द प्रयुक्त हुआ
१५. क- "सर्वं पञ्चत्वमस्तिकायावरोधात्।" तत्त्वार्थाधिगमभाष्य/१/३५ / पृ. ६५ ।
ख-"पञ्चास्तिकायसमुदायो लोकः।" तत्त्वार्थाधिगमभाष्य /३/६/ पृ. १५९ । ___ग-"पञ्चास्तिकायात्मकम्।" तत्त्वार्थाधिगमभाष्य /९/७/ पृ.४०३। १६. "षट्त्वं षड्द्रव्यावरोधात्।" तत्त्वार्थाधिगमभाष्य १/३५ / पृ. ६५ ।
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