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________________ सप्तम प्रकरण तत्त्वार्थसूत्र के यापनीयग्रन्थ न होने के प्रमाण - दिगम्बर विद्वान् पं० नाथूराम जी प्रेमी मानते हैं कि तत्त्वार्थसूत्र और भाष्य दोनों के कर्ता उमास्वाति हैं। और ऐसा मानते हुए उन्होंने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि तत्त्वार्थसूत्र यापनीयपरम्परा का ग्रन्थ है। किन्तु इसके समर्थन में उन्होंने जो तर्क दिये हैं, वे यथार्थ से परे हैं। अतः उनसे यह सिद्ध नहीं होता कि तत्त्वार्थसूत्र यापनीयग्रन्थ है। यहाँ उनके तर्कों का निराकरण किया जा रहा हैप्रेमी जी "तत्त्वार्थसूत्रकर्तारमुमास्वातिमुनीश्वरम्। श्रुतकेवलिदेशीयं वन्देऽहं गुणमन्दिरम्॥ "इस श्लोक में उमास्वाति को श्रुतकेवलिदेशीय विशेषण दिया गया है और यही विशेषण वैयाकरण शाकटायन के साथ लगा हुआ मिलता है, साथ ही इसी शिलालेख में शाकटायन की भी स्तुति की गई है। 'श्रुतकेवलिदेशीय' का अर्थ होता है 'श्रुतकेवली के तुल्य' और शाकटायन यापनीय थे।" (जै.सा.इ./द्वि.सं./पृ.५३४)। इस विशेषण की समानता से सिद्ध होता है कि उमास्वाति भी यापनीय थे। प्रो० (डॉ.) ए० एन० उपाध्ये ने भी इसी तर्क से तत्त्वार्थसूत्रकार उमास्वाति को यापनीय आचार्य सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। वे अपने जैनसम्पद्राय के यापनीयसंघ पर कुछ और प्रकाश नामक लेख में लिखते हैं-"विख्यात वैयाकरण शाकटायन ने आत्मप्रशस्ति में निम्नप्रकार लिखा है-"इति श्रीश्रुतकेवलिदेशीयाचार्यस्य शाकटायनस्य कृतौ शब्दानुशासने" इत्यादि। सम्भवतः यही तरीका है, जिससे यापनीय साधु (गुरु) स्वयं को दूसरों से पृथक् दिखलाया करते थे। तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता उमास्वाति ने भी ऐसा ही वर्णन किया है तत्त्वार्थसूत्र कर्तारममास्वाति मुनीश्वरम्। श्रुतकेवलिदेशीयं वन्देऽहं गुणमन्दिरम्॥" (मूल अँगरेजी लेख के हिन्दी-अनुवादक : श्री कुन्दनलाल जैन/ अनेकान्त': महावीर निर्वाण विशेषांक/सन् १९७५ ई० / पृष्ठ २५२)। निराकरण यहाँ पहले तो यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि पाल्यकीर्ति शकटायन को तो 'श्रुतकेवलिदेशीय' स्वयं शाकटायन ने कहा है, किन्तु तत्त्वार्थसूत्रकार उमास्वाति को Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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