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तत्त्वार्थसूत्र / ३५५
प्रमाथावगाहादिगुणसम्पन्नवनविचारिणश्च मदोत्कटा बलवन्तोऽपि हस्तिनो हस्तिबन्धकीषु स्पर्शनेन्द्रियसक्तचित्ता ग्रहणमुपगच्छन्ति । ततो बन्धवधदमनवाहनाङ्कुशपाष्णिप्रतोदाभिघातादिजनितानि तीव्राणि दुःखान्यनुभवन्ति । नित्येमेव स्वयूथस्य स्वच्छन्दप्रचारसुखस्य वनवासस्यानुस्मरन्ति। तथा मैथुनसुखप्रसङ्गादाहितगर्भाश्वतरी प्रसवकाले प्रसवितुमशक्नुवन्ती तीव्र दु:खाभिहताऽवशा मरणमभ्युपैति । एवं सर्वे एव स्पर्शनेन्द्रियप्रसक्ता इहामुत्र च विनिपातमृच्छन्तीति । तथा जिह्वेन्द्रियप्रसक्ता मृतहस्तिशरीरस्थस्रोतोवेगोढवायसवत् हैमनघृतकुम्भप्रविष्टमूषिकवत् गोष्ठप्रसक्त- ह्रदवासिकूर्मवत् मांसपेशीलुब्धश्येनवत् वडिशामिषगृद्धमत्स्यवच्चेति। तथा घ्राणेन्द्रियप्रसक्ता ओषधिगन्धलुब्धपन्नगवत् पललगन्धानुसारिमूषिकवच्चेति । तथा चक्षुरिन्द्रियप्रसक्ताः स्त्रीदर्शन-प्रसङ्गादर्जुनकचोरवत् दीपालोकलोलपतङ्गवद्विनिपातमृच्छन्तीति चिन्तयेत् । तथा श्रोत्रेन्द्रियप्रसक्तास्तित्तिर- कपोतकपिञ्जलवत् गीतसङ्गीतध्वनिलोलमृगवद्विनिपातमृच्छन्तीति चिन्तयेत् । एवं चिन्तयन्नास्त्रवनिरोधाय घटत इति आस्रवानुप्रेक्षा । (९/७/पृ. ४००)
अ० १६ / ०२
यहाँ ध्यान देने योग्य है कि सर्वार्थसिद्धि में जो बात चार पंक्तियों में कही गई है उसका विस्तार भाष्यकार ने चौदह पंक्तियों में किया है । इन्द्रियादि के साथ अकुशलागम-कुशलनिर्गमद्वारभूत यह नया विशेषण जोड़ा है। स्पर्शनेन्द्रियासक्ति के दुष्परिणाम का दिग्दर्शन गार्ग्य, सात्यकि के पौराणिक दृष्टान्त द्वारा किया है। सर्वार्थसिद्धिकर ने जहाँ केवल इतना कहा है कि स्पर्शन आदि इन्द्रियाँ, वनगज, कौआ, सर्प, पतंग और हिरण आदि को दुःख - समुद्र में डुबाती हैं, वहाँ भाष्यकार ने इन प्राणियों में से प्रत्येक के इन्द्रियासक्तिजन्य दुःख का वर्णन अत्यन्त हृदयस्पर्शी विशेषणों एवं उपमाओं का प्रयोग करते हुए बड़े ही प्रभावोत्पादक ढंग से किया है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि भाष्य में प्रयुक्त गद्य सर्वार्थसिद्धि के गद्य की अपेक्षा साहित्यिक दृष्टि से पर्याप्त विकसित है ।
६. सर्वार्थसिद्धि की अपेक्षा भाष्य में पर्यायशब्दों का बहुशः वर्णन किया गया है। सर्वार्थसिद्धि में केवल निम्नलिखित वाक्य में अनिन्द्रिय, मन और अन्तःकरण को एकार्थक बतलाया गया है - " अनिन्द्रियं मनः अन्तःकरणमित्यनर्थान्तरम्।" (१/१४/ १८६ / पृ. ७७) किन्तु भाष्य में इनके अनेक उदाहरण दृष्टिगोचर होते हैं। यथानिसर्गः परिणामः स्वभावः अपरोपदेश इत्यनर्थान्तरम् । (१/३)।
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ख अधिगमः अभिगमः आगमो निमित्तं श्रवणं शिक्षा उपदेश इत्यनर्थान्तरम् ।
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(१/३) ।
ग अवग्रहो ग्रहणमालोचनमवधारणमित्यनर्थान्तरम् । ( १ / १५ ) ।
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ईहा ऊहा तर्कः परीक्षा विचारणा जिज्ञासेत्यनर्थान्तरम् । ( १ / १५ ) ।
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