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अ० १६ / प्र० १
तत्त्वार्थसूत्र / २८१ प्रकट क्यों करते और गणधर उसका संकलन क्यों करते। इससे सिद्ध है कि उपर्युक्त कल्पना युक्तिमत् न होने से यथार्थ नहीं है ।
ख- दूसरी बात यह है कि चौदह पूर्वों के अध्ययन के बिना उनका अर्थबोध उन्हीं ऋषियों को होता है, जिन्हें प्रज्ञाश्रमणत्वरूप ऋद्धि (लब्धि ) प्राप्त हो जाती है । ५५ किन्तु दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों आम्नायों के आगमों में स्त्रियों को सभी प्रकार की ऋद्धियों की प्राप्त का निषेध किया गया है । श्वेताम्बरग्रन्थ प्रवचनसारोद्धार में कहा गया है कि भव्य स्त्रियाँ तीर्थंकर, चक्रवर्ती, नारायण, बलभद्र, संभिन्न श्रोतृत्व, चारणऋद्धि, चौदह पूर्ववत्त्व गणधर, पुलाक तथा आहारकऋद्धि, ये दस अवस्थाएँ प्राप्त नहीं कर सकतीं ।५६
यापनीय-आचार्य पाल्यकीर्ति शाकटायन कहते हैं कि यद्यपि स्त्रियों में वाद आदि लब्धियाँ नहीं होतीं, वे जिनकल्प और मन:पर्ययज्ञान भी प्राप्त नहीं कर सकतीं, तो भी उनके मोक्ष का अभाव नहीं है। यदि 'वाद' आदि लब्धियों के अभाव में स्त्रियों को मोक्ष की प्राप्ति असंभव होती, तो आगम में जैसे जम्बूस्वामी के निर्वाण के बाद जिनकल्प आदि के विच्छेद का उल्लेख किया गया है, वैसे ही स्त्रीमुक्ति के अभाव का भी उल्लेख किया जाता।
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यहाँ शाकटायन ने स्त्रियों में वाद आदि लब्धियों की योग्यता का अभाव स्पष्टतः स्वीकार किया है । वादऋद्धि या वादित्वऋद्धि उस ऋद्धि को कहते हैं, जिससे बहुवाद के द्वारा शक्रादि के पक्ष को भी निरुत्तर कर दिया जाता है। ५८ वादादि ऋद्धियों में प्रज्ञाश्रमणत्व ऋद्धि भी समाविष्ट है । अतः सिद्ध है कि स्त्रियों को प्रज्ञाश्रमणत्व ऋद्धि की प्राप्ति का निषेध श्वेताम्बर, दिगम्बर और यापनीय तीनों आम्नायों में किया गया
५५. पगदीए सुदणाणावरणाए वीरियंतराया ए ।
उक्कस्सखवोवसमे उप्पज्जइ पण्णसमणद्धी ॥ ४ / १०२६ ॥
पण्णसवर्णाद्धिजुदो चोद्दसपुव्वीसु विसयसुहुमत्तं ।
सव्वं हि सुदं जाणदि अकअज्झअणो वि णियमेणं ॥ ४ / १०२७ ॥ तिलोयपण्णत्ती / द्विखं./ पृ. ३०६ ।
५६. देखिए, पादटिप्पणी ५२ ।
५७. वादविकुर्वणत्वादिलब्धिविरहे श्रुते कनीयसि च ।
जिनकल्प-मन:पर्ययविरहेऽपि न सिद्धिविरहोऽस्ति ॥ ७ ॥ वादादिलब्ध्यभाववदभविष्यद्यदि च सिद्ध्यभावोऽपि । तासामवारयिष्यद्यथैव
जम्बूयुगादारात् ॥ ८ ॥ स्त्रीनिर्वाण - प्रकरण |
५८. सक्कादिं पि विपक्खं बहुवादेहिं णिरुत्तरं कुणदि । परदव्वाइं गवेसइ
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वादित्तबुद्धी ॥ ४ / १०३२ ॥ तिलोयपण्णत्ती ।
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