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________________ [पच्चीस] ३. आचार्य प्रभव का उल्लेख यापनीयग्रन्थ का असाधारण धर्म नहीं ४. देवनिर्मित कमलों के ऊपर चलना दिगम्बरीय मान्यता भी ५. मागधीभाषा में उपदेश दिगम्बरपरम्परा में भी मान्य ६. अदिगम्बरीय मान्यताओं का यापनीयमान्यता होना अप्रामाणिक ७२८ ७२८ ७२९ ७३० ७३५ ७३५ ७४४ ७४९ ७५० ७५८ ७५८ ७५९ ७६० त्रयोविंश अध्याय बृहत्कथाकोश - बृहत्कथाकोश के दिगम्बरग्रन्थ होने के प्रमाण१. स्त्रीमुक्ति का प्रतिपादन नहीं, अपितु निषेध २. गृहस्थमुक्तिनिषेध ३. सवस्त्रमुक्तिनिषेध - सवस्त्रमुक्तिनिषेध के अन्य प्रमाण ४. भगवती-आराधना दिगम्बरग्रन्थ ५. पुन्नाटसंघ दिगम्बरसंघ ६. दिगम्बरग्रन्थ होने के अन्य प्रमाण ७. भद्रबाहुकथानक में कोई भी अंश प्रक्षिप्त नहीं चतुर्विंश अध्याय .. छेदपिण्ड, छेदशास्त्र एवं प्रतिक्रमण-ग्रन्थत्रयी - इनके दिगम्बरग्रन्थ होने के प्रमाण- छेदपिण्ड १. मुनि के दिगम्बरमान्य अट्ठाईस मूलगुणों का विधान २. अचेलव्रत भंग करने पर प्रायश्चित का विधान - यापनीयपक्ष-समर्थक हेतुओं का निरसन १. दिगम्बरग्रन्थों में भी श्रमणी का उल्लेख २. काणूर्गण दिगम्बरसंघ का गण ३. रविषेण दिगम्बराचार्य हैं ४. छेदपिण्ड के कर्ता इन्द्र यापनीय नहीं ७६५ ७६५ ७६५ ७६६ ७६७ ও59 ७६८ ७६९ ७६९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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