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८२० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २
२८. उपदेशमाला ( उवएसमाला) : श्री धर्मदास गणी । प्रकाशक : धनजी भाई देवचन्द्र जौहरी, मुम्बई ।
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• विशेषवृत्ति (दोघट्टी टीका) : रत्नप्रभसूरि ।
२९. ओघनिर्युक्ति : भद्रबाहु स्वामी । आगमोदय समिति मेहसाना । ई० सन् १९१९ । • वृत्तिकार : द्रोणाचार्य ।
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३०. कठोपनिषद् : गीता प्रेस गोरखपुर । वि० सं० २०२४ ।
शांकरभाष्य श्री शंकराचार्य ।
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३१. कल्पकौमुदीवृत्ति : श्री शान्तिसागरकृत कल्पसूत्रव्याख्या । श्री ऋषभदेव केशरीमल जैन श्वेताम्बर संस्था, रतलाम । ई० सन् १९३६ ।
३२. कल्पनिर्युक्ति (कल्पसूत्रनिर्युक्ति) : श्वेताम्बर भद्रबाहु - द्वितीय। मुनि कल्याण विजय जी - कृत 'श्रमण भगवान् महावीर' (पृ. ३३६ ) में तथा श्री ताटक गुरु जैन ग्रन्थालय उदयपुर (राज० ) द्वारा प्रकाशित 'कल्पसूत्र' की श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री - लिखित प्रस्तावना (पृ. १६) एवं परिशिष्ट १ की टिप्पणी क्र. ३ में उल्लेख है ।
३३. कल्पप्रदीपिकावृत्ति : श्री संघविजयगणिकृत कल्पसूत्रवृत्ति । प्रकाशन : सेठ वाडीलाल चकुभाई देवीशाह पाटक । वि० सं० १९९१ ।
३४. कल्पलता व्याख्या : समयसुन्दरगणिकृत कल्पसूत्रव्याख्या । निर्णयसागर मुद्रणयन्त्रालय, मुम्बई । ई० सन् १९३९ ।
३५. कल्पसमर्थन : ( कल्पसूत्रान्तर्गत अधिकार - बोधक) । ऋषभदेव केशरीमल जैन श्वेताम्बर संस्था, रतलाम । वि० सं० १९९४ ।
३६. कल्पसूत्र : प्राकृत भारती, ३७. कल्पसूत्र : भाषानुवाद : आर्यारत्न सज्जन श्री । वि० सं० २०३८ ।
जयपुर ।
३८. कसायाहुड (भाग १, ८, १२, १३, १४, १५, १६ ) : आचार्य गुणधर । भारतवर्षीय दि० जैन संघ, चौरासी, मथुरा। ई० सन् १९७४--- । द्वितीय संस्करण ।
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- चूर्णिसूत्र : यतिवृषभाचार्य ।
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आचार्य वीरसेन ।
जयधवला टीका :
प्रस्तावना : १. ग्रन्थपरिचय एवं २. ग्रन्थकारपरिचय : सिद्धान्ताचार्य पं० कैलाश
चन्द्र शास्त्री, (पृ. ३-७३) ३. विषयपरिचय : पं० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य। (पृ. ७३-१०६) (" भूमिका के मुख्य तीन भाग हैं: ग्रन्थ, ग्रन्थकार और विषय - परिचय | इनमें से आदि के दो स्तम्भ पं० कैलाशचन्द्र जी ने लिखे हैं और अन्तिम स्तम्भ पं० महेन्द्रकुमार जी ने लिखा है।" सम्पादकीय वक्तव्य / पृ. १४ ब) ।
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