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________________ वज्रनन्दी (पूज्यपाद का शिष्य, द्राविड़संघ संस्थापक) १९६, २६१ वट्टकेर (आचार्य) २१५, ४७५ वदनोगुप्पे-ताम्रपट्ट-दानपत्र ४५९, ४६० । वरांगचरित (जटासिंहनन्दी) २७३-२७५, ४७१, ६२८ वराहमिहिर (ज्योतिर्विद) ४१४, ५३५ ।। वरिसवर (श्वेताम्बर-कर्मग्रन्थों का विशिष्ट शब्द) ७६५ वर्धमानगुरु २८८, ४५९, ४६३ वल्लाल (महाराज) ९५ वंशीधर व्याकरणाचार्य, पं० ६४८, ६७८, ६८७ वसन्तकीर्ति, दि० जैनाचार्य (आगमविरुद्ध अपवादवेष-प्रवर्तक) २०, ४८, ६०० वसुनन्दी आचार्य (सैद्धान्तिक) १९६ वसुनन्दी-श्रावकाचार ३९ वाक्पदीय (भर्तृहरि) ६४५ . वागेश्वरी (सरस्वती) ३३ वाचक (पद) ७५७, ७५८ (पूर्वविद्), ७७८ (वाचना देनेवाला) वाटग्राम १८३ वाणारसीमत १३३ वात्सल्यरत्नाकर (द्वि.खं.) ६८६ वारानगर, वारा, वारां ९, १६०, ३१८, ३२७ वाल्मीकि (रामायणकार) १८१ विक्रमादित्य राजा (ईसापूर्व ५७) २७ विक्रमोर्वशीयम् (नाटक-कालिदास) ४८७ विक्रान्तकौरवीय नाटक ४९८ विग्रहगति ५८१, ५८२ शब्दविशेष-सूची / ८०९ विजयनगर-दीपस्तम्भलेख ३६, ४६१ विजहना २०१ विज्ञान-अविज्ञान (वस्तुधर्म) ३४१, ३४२ विज्ञानाद्वैत ३३३, ३३४ विद्याधर जोहरापुरकर (देखिये 'जोहरापुर कर') विनयन्धर ३१०, ३११ विबुधश्रीधर (श्रुतावतार के कर्ता) ५५२, ५६६, ५६७, ५७२ विरहदिन २४, २५ विविधदीक्षा-संस्कारविधि (भट्टारक-सम्प्र दाय द्वारा रचित) ११५, १२२ विशेषणवती (जिनभद्रगणि-क्षमाश्रमण) ५२५, ५२६ विशेषावश्यकभाष्य २४४,५१०,५११,५७५, ५८९, ५९७, ६३७ - हेमचन्द्रवृत्ति ५८९,५९७,६०३,६३८, ६४१ विष्णु (वैदिक देवता) ३०२, ३०३ विष्णुकर्तृत्ववाद ३०१, ३०२ विसंयोजना ३७३, ३७४, ३७७, ३७८ विसंयोजना और अप्रशस्त उपशम में कथं चित् साम्य (संक्रमण की अपेक्षा) ३७६ विसंयोजना और उपशम में भेद ३७४ विसंयोजना और क्षपणा में भेद ३७३ विसंयोजना द्वितीयोपशम एवं क्षायिक सम्यग्दर्शनों में ३७६, ३७७ वीरनिर्वाण संवत् ४१६ वीरवर्धमानचरित (भट्टारक सकलकीर्ति) ७३, १८५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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