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________________ न ८०० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ दिगम्बरजैनसंघ (सम्प्रदाय, परम्परा) २९१ दिगम्बरजैन सिद्धान्त दर्पण धनगिरि (श्वे० आचार्य) ४९१ -द्वितीय अंश ४९०, ४९७, ५१७,, धर (श्वे० आचार्य) ५४६, ५७१, ५७२ ६१२, ६१८, ६४८, ६५० धरसेन (आचार्य) ३११, ३३२, ५४३-तृतीय अंश ६११, ६८५ __५४६, ५४८-५५१, ५६४, ५६८ दिग्नाग (बौद्धदार्शनिक) ५३४ धर्मपट्ट ७० दीघनिकायपाळि ४४४ धर्ममंगल (मराठी मासिक पत्रिका) १४७, दुर्विनीत (गंगवंशी राजा अविनीत का १४८ उत्तराधिकारी, पूज्यपाद का शिष्य) २६१ नग्न क्षपण (नग्गखवणो) ६०३ देवगिरि-ताम्रपत्रलेख (श्रीविजयशिवमृगेश- नट इलापुत्र ६१९ वर्मा) २९१ नन्दि आम्नाय, नन्दिसंघ १३, १४, ३४-३७ देवदत्ता वेश्या २७ नन्दिगण (मूलसंघ, कुन्दकुन्दान्वय) ३५ देवदूष्य वस्त्र ९५० नन्दिवृक्ष २७ देवनन्दी, पूज्यपाद स्वामी, (देखिये, 'पूज्य नन्दिसंघ २७, ३४, ३६, ४१ पाद') नन्दिसंघ की गुर्वावली (प्रथम शुभचन्द्रकृत) देवरहल्लि-अभिलेख ३५ ४९, १६८-१७४ देवर्द्धिगणि-क्षमाश्रमण ४६८, ५१० नन्दिसंघ की पट्टावली (दि इण्डियन देवसंघ २७, ३४, ४१ ऐण्टिक्वेरी Vol. XX के अनुसार देवसेन (आचार्य, दर्शनसार के कर्ता) १८४, हिन्दी में) ७, ८, ९, १० १९० नन्दिसंघ की पट्टावली (प्रो० हार्नले द्वारा देशिय (देशीय, देशी) गण ३५-३९ सम्पादित एवं दि इण्डियन दोड्ड-कणगालु-अभिलेख ३८ ऐण्टिक्वेरी Vol. XX में प्रकाशित, दोस (द्वेष) ७७३ अँगरेजी में)१४-१७, १५७-१६७ द्रविळगण-नन्दिसंघ-अरुङ्गल अन्वय ३५ नन्दिसंघ की पट्टावली (श्रवणबेलगोल स्तम्भ द्रव्यमानुषी (द्रव्यस्त्री) ६५४, ६७८, ६८० लेख) १७५-१७८ द्रव्यलिंग (द्रव्यवेद) ६०३, ६३२ नन्दिसंघ की प्राकृत पट्टावली (दि इण्डियन द्रव्यस्वभावप्रकाशक नयचक्र १९० ऐण्टिक्वेरी Vol. Xx में प्रकाशित, द्वैताद्वैत-अनेकान्त ३३८ उसका हिन्दी रूपान्तर) २५, २६, द्वैताद्वैतवादरूप द्वैतवाद (कुन्दकुन्द) ३३३, १५२-१५६,५४३,५४६, ५६६,५६७ ३३४, ३४० नन्दिसंघ की विरुदावली (अज्ञातकर्तृक) ५० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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