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________________ ७९२ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ इसिभासिय (ऋषिभाषित) ५९० ऋद्धिधारी जिन ५९५ ऋषिभाषित (देखिये, 'इसिभासिय') ईशावास्योपनिषद् ४४९ ऋषिमण्डलसूत्र ५०३ एकान्त (ऐकान्तिक) अचेलमुक्तिवादी (अचेलमार्गी) निर्ग्रन्थसंघ (मूलसंघ, दिगम्बरपरम्परा) ५६८, ५७४, ७१३ ए० चक्रवर्ती नयनार (प्रोफेसर)१९५ ए० एन० उपाध्ये (आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये, डॉ०, प्रो०) २१८,३०१,५५२,७४२ एन्साइक्लोपीडिया ऑफ रिलिजन ५३७ एरड्ड कट्टे वस्ति-मण्डप-स्तम्भ-अभिलेख उच्छेदवाद ३४२ उज्जयिनी नगरी ८ उत्तरभारतीय-सचेलाचेल-निर्ग्रन्थसंघ (परम्परा, सम्प्रदाय) ५४३ (निर्ग्रन्थ शब्द से अभिप्राय),५४४-५४८,५६६,५७९, ७१३, ७१५, ७१६, ७१९, ७२०, ७३६, ७४३, ७६० उत्तराध्ययनसूत्र २३७, ३६४, ५८५, ५९०, ६६१ उदयचन्द्र जैन (प्रो०) ६६१ उपदेशतरङ्गिणी (हरिभद्रसूरि) ५९० उपाध्याय (परमेष्ठी) ११९ उपाध्यायपद-दानविधि १२१ उपासकाध्ययन २८० उमास्वाति ३७, ४४, १८६, २३९ उमास्वामी (उमाप्रभु) ७, १५, ४७ उमास्वामि-श्रावकाचार (भट्टारकीय ग्रन्थ) १३७ उपपाद ६४३ उपशम (प्रशस्त, अप्रशस्त) ३७४ उपकप्पेंति (उपकल्पयन्ति) ८६८, ८६९ उव्वलण (उद्वलन) ७६५ एलवाचार्य २८८, ४५९ एलवाचार्यगुरु ४६०-४६३. एलाचार्य (कुन्दकुन्द) ३६, ४५९-४६२ ऐहिककर्म (ज्योतिष, मन्त्रतन्त्र, वैद्यक आदि) ६० भो ओसण्ण (अवसन्न = पासत्थादि पाँच भ्रष्ट मुनियों में से एक) ५८, ५९ ऊर्जयन्तगिरि (गिरनार पर्वत) ३२, ३३ ऊर्जयन्तगिरि-विवाद ३३ ऋ ऋग्वेद ३०२, ३०३, ३३५, ४४३ कंजीपुरम् २९६ कठोपनिषत् ४४९ कड़ब (कड़प) दानपत्र (अभिलेख) ३५, ५४६, ५६५, ५६६ कण्डूर् (काण्डूर, काडूर) गण १११, ११२ कण्ह श्रमण ४९२ कत्तिले बस्ती स्तंभलेख ३९ कन्नड़लिपि ६८५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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