SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 844
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७९० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ ५६८, ६२८, ६९३, ८४८, ८५५, अर्धफालक (साधु, संघ, सम्प्रदाय) ५६८ ८७०, ८७५, ८७६, ८८१ अर्हत् ऋषि ५९१ अन्तदीपकन्याय ४०३ अर्हद्वलि (एकांगधारी) ३६, ४४, ३११, अन्तर २४, २५ ७२६ अन्यलिंगिमुक्ति-निषेध (देखिये, परतीर्थिक- अल्तेम-अभिलेख ३५ मुक्ति-निषेध) अवसन्न (भ्रष्ट दि० जैन मुनि) ६०१ अपगतवेदी ७१४ अव्याकृतवाद (बुद्धदर्शन) ४४४ अपगतवेदत्व ७२४, ७५३ अविनीत (कोङ्गणिमहाधिराज) २६१, २८३, अपभ्रंशप्रयोग ४८५-४८८ २८४, २८६ अपभ्रंशीकरण २७१ अशुभपरिणाम ४८० अपराजितसंघ ४१ अशोक-स्तम्भलेख ४८५, ४८६ . अपराजितसूरि (विजयोदयाटीकाकार) २७६, अष्टशती (अकलंकदेव) ५२६, ५२७ २७७ अष्टसहस्री (विद्यानन्द स्वामी) ५०८ अपर्याप्तक ५८२, ५८३ अष्टाध्यायी (पाणिनि) १८१ अपवाइज्जमाण (अप्रवाह्यमान) ७३८,७४०, आ ७७९, ७८०, ७८१ आगमविच्छेद श्वेताम्बरपरम्परा में भी : अपवाद (आपवादिक) लिंग-भ्रष्ट ४६८ दिगम्बरजैन मुनि का अस्थायी आचारांग ५८५ सचेललिंग ६०० - शीलांकाचार्यवृत्ति ५१३,५३३, ५९७ अप्रशस्त उपशम ३७४-३७६ आचारांगनियुक्ति ४१२, ४१४, ४१५, ५३२, अभिधान राजेन्द्र कोष २३४, ४२९ ५५७, ५५९ अभिनवधर्मभूषण यति ७४३ आचार्य (तृतीय परमेष्ठी) ११९ अभूतार्थनय २०७ आचार्य (सेवक) ३१, ३२ अभेदवाद (एकोपयोगवाद) : (देखिये, आचार्य-पदस्थापना-विधि १२२ केवलि-उपयोगद्वय) आचार्यभक्ति (कुन्दकुन्द) ४७८ अमितसेन (पुन्नाटसंघाग्रणी) ३१० आचार्य-मतभेद ७५६-७५८ अमृतचन्द्र आचार्य १८५, १८६, १८८, १८९, आतुरप्रत्याख्यान (वीरभद्र) २१७, २७५, ३३९, ३४७, ३५१ ५७५ अमोघवर्ष (सम्राट) ५३ आत्मवाद ३३४ अय्यावले ५०० (व्यापारियों का महासंघ) आत्माद्वैत ३३३ आत्मनिरूपण ४७२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy