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समर्पण
ईसोत्तर २०वीं-२१वीं शती के अद्भुत, अद्वितीय, अतिलोकप्रिय दिगम्बरजैन मुनि परमपूज्य आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज को,
जिनकी प्रगाढ़ आगमश्रद्धा, तलस्पर्शी आगमज्ञान एवं आगमनिष्ठचर्या ने इस पंचमकाल में मुनिपद को प्रामाणिकता और श्रद्धास्पदता प्रदान की है,
जिनके अलौकिक आकर्षण के वशीभूत हो अनगिनत युवा-युवतियाँ भोगपथ का परित्याग कर योगपथ के पथिक बन गये और निरन्तर बन रहे हैं,
जिनकी वात्सल्यमयी दृष्टि, अतिहारिणी मुस्कान एवं हित-मित-प्रिय वचन दर्शनार्थियों को आनन्द के सागर में डुबा देते हैं,
जिनके वात्सल्यप्रसाद का पात्र में भी बना हूँ तथा जिन्होंने अनेक शुभ उत्तरदायित्व आशीर्वाद में प्रदान कर मेरे जीवन के अन्तिम चरण को धर्मध्यान केन्द्रित बना दिया। नमोऽस्तु।
गुरुचरणानुरागी रतनचन्द्र जैन
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