SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीनों खण्डों की विषयवस्तु का परिचय [उनतीस] उल्लेख है। ईसापूर्व ८०० के महर्षि यास्करचित निघण्टु में दिगम्बर एवं वातवसन (वायुरूपी वस्त्रधारी) मुनियों की चर्चा की गयी है। ५०० ई० पू० से १०० ई० पू० तक रचित महाभारत में नग्नक्षपणक शब्द से दिगम्बरजैन साधुओं का कथन हुआ है। ३०० ई० के पञ्चतन्त्र (अपरीक्षितकारक) में नग्नक, क्षपणक और दिगम्बर शब्दों से तथा धर्मवृद्धि के आशीर्वाद के उल्लेख से दिगम्बरजैन मुनियों का वर्णन किया गया है। मत्स्यपुराण (३०० ई०), विष्णुपुराण (३००-४०० ई०) मुद्राराक्षस नाटक (४००५०० ई०) वायुपुराण (५०० ई०) तथा वराहमिहिर-बृहत्संहिता (४९० ई०) में दिगम्बरजैन मुनियों के लिए नग्न, निर्ग्रन्थ, दिग्वासस् और क्षपणक शब्द प्रयुक्त हुए हैं। बौद्ध पिटकसाहित्य में ईसापूर्व छठी शती के बुद्धवचनों का संकलन है, जो ईसापूर्व प्रथम शताब्दी में लिपिबद्ध हो चुका था। उसके अन्तर्गत सुत्तपिटक के अंगुतरनिकाय में निर्ग्रन्थों को अहिरिका (अह्रीक = निर्लज्ज) कहा गया है, जिससे उनका नग्न रहना सूचित होता है। अंगुत्तरनिकाय में ही इन्हें अचेल शब्द से भी अभिहित किया गया है। प्रथम शती ई० के बौद्धग्रन्थ दिव्यावदान में निर्ग्रन्थों को नग्न विचरण करनेवाला कहा गया है। धम्मपद-अट्ठकथा (४-५वीं शती ई०) की विसाखावत्थु कथा में भी निर्ग्रन्थों को नग्नवेशधारी ही बतलाया गया है तथा आर्यशूर (चौथी शती ई०) ने संस्कृत में रचित जातकमाला में निर्ग्रन्थों को वस्त्रधारण करने के कष्ट से मुक्त कहा है। इन जैनेतर साहित्यिक प्रमाणों से सिद्ध होता है कि दिगम्बरजैनमत ऋग्वेद के रचनाकाल (ई० पू० १५००) से भी प्राचीन है। अतः उसे वीर निर्वाण सं० ६०९ (ई० सन् ८२) में बोटिक शिवभूति के द्वारा अथवा विक्रम की छठी शती में आचार्य कुन्दकुन्द के द्वारा प्रवर्तित बतलाया जाना एक बहुत बड़ा झूठ है। पञ्चम अध्याय-इस अध्याय में पुरातत्त्व के प्रमाणों के आधार पर दिगम्बरजैनमत की प्राचीनता सिद्ध की गई है। हड़प्पा की खुदाई में ई० पू० २४०० वर्ष पुरानी एक मस्तकविहीन नग्न जिनप्रतिमा प्राप्त हुई है। ठीक वैसी ही एक मौर्यकालीन (ई० पू० तृतीय शताब्दी की) नग्न जिनप्रतिमा लोहानीपुर (पटना, बिहार) में उपलब्ध हुई है। ये प्राचीन नग्न जिनप्रतिमाएँ इस बात का सबूत हैं कि दिगम्बरजैन-परम्परा ईसापूर्व ३०० वर्ष से पुरानी तो है ही, ईसापूर्व २४०० वर्ष से भी प्राचीन है। श्वेताम्बरसम्प्रदाय में नग्न जिनप्रतिमाओं का निर्माण कभी नहीं हुआ, क्योंकि श्वेताम्बर नग्नत्व को अश्लील एवं लोकमर्यादा के विरुद्ध मानते हैं, इसलिए उन्होंने यह कल्पना की है कि तीर्थंकरों का नग्न शरीर दिव्य शुभप्रभामंडल से आच्छादित हो जाता है, फलस्वरूप वे नग्न दिखाई नहीं देते। Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy