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प्रो० (डॉ० ) रतनचन्द्र जैन
जन्म २ जुलाई १९३५ को, मध्यप्रदेश के लुहारी (सागर) नामक ग्राम में । पिता स्व० पं० बालचन्द्र जी जैन एवं माता – स्व० श्रीमती अमोलप्रभा जी जैन ।
प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही पश्चात् श्री गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय, सागर (म०प्र०) में संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, अँगरेजी तथा धर्मग्रन्थों का
अध्ययन ।
अनन्तर स्वाध्याय के द्वारा मैट्रिक से लेकर एम० ए० (संस्कृत) तक की परीक्षाएँ उत्तीर्ण । प्रावीण्यसूची में बी० ए० में दसवाँ स्थान और एम० ए० में प्रथम । 'जैनदर्शन में निश्चय और व्यवहारनय' विषय पर पी-एच० डी० उपाधि प्राप्त ।
शा० टी० आर० एस० स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रीवा (म० प्र०), शा० हमीदिया स्नातकोत्तर महाविद्यालय, भोपाल एवं बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल ( म०प्र०) में स्नातकोत्तर कक्षाओं तक संस्कृत विषय का एवं भाषाविज्ञान की एम० फिल० कक्षा में शैलीविज्ञान का अध्यापन तथा पी-एच० डी० उपाधि के लिए शोधार्थियों का मार्गदर्शन ।
परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी के आदेश से उनके द्वारा संस्थापित प्रतिभामण्डल की ब्रह्मचारिणी बहनों को दो चातुर्मासों (सन् २००२ एवं २००३) में संस्कृत एवं सर्वार्थसिद्धिटीका का अध्यापन । आचार्यश्री की ही प्रेरणा से 'जैनपरम्परा और यापनीयसंघ' ग्रन्थ का लेखन । उनके ही आशीर्वाद से सन् २००१ से अद्यावधि 'जिनभाषित' मासिक पत्रिका का सम्पादन ।
प्रकाशित ग्रन्थ : १. जैनदर्शन में निश्चय और व्यवहार नय : एक अनुशीलन, २. जैनपरम्परा और यापनीयसंघ (तीन खण्डों में) ।
सम्प्रति भोपाल ( म०प्र०) में निवास करते हुए 'जिनभाषित' के सम्पादन एवं श्री पार्श्वनाथ दि० जैन मन्दिर शाहपुरा, भोपाल में श्रावक-श्राविकाओं को धर्मग्रन्थों के अध्यापन में संलग्न ।
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