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________________ [आठ] जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १ ११. अचेलत्व के मुख्य और औपचारिक भेदों की कल्पना १२. सग्रन्थ में निर्ग्रन्थ की कल्पना १३. मूलसंघ के यापनीयसंघ का पूर्वनाम होने की कल्पना १४. कुन्दकुन्दसाहित्य में दार्शनिक विकास की कल्पना १५. शिवमार में शिवकुमार की कल्पना १६. अनेक दिगम्बरग्रन्थों के यापनीयग्रन्थ होने की कल्पना १७. गुणस्थान-सिद्धान्त के विकास की कल्पना १८. सप्तभंगी के विकास की कल्पना १९. यापनीयों द्वारा अर्धमागधी-आगमों के शौरसेनीकरण की कल्पना २०. दिगम्बरग्रन्थों में यापनीयमत-विरुद्ध कथनों के प्रक्षेप की कल्पना १३ २१. स्वाभीष्ट कल्पित-शब्दादि का आरोपण१. कल्पित शब्द, २. कल्पित अर्थ, ३. कल्पित लक्षण द्वितीय अध्याय काल्पनिक हेतुओं की कपोलकल्पितता का उद्घाटन प्रथम प्रकरण-तीर्थकरों का सवस्त्रतीर्थोपदेशकत्व प्रमाणविरुद्ध o विरोधी प्रमाण द्वितीय प्रकरण-शिवभूति यापनीयमत-दिगम्बरमत-प्रर्वतक नहीं १. बोटिकमतोत्पत्तिकथा २. बोटिकमतोत्पत्तिकथा का विस्तार से वर्णन ३. मुनि कल्याणविजय जी के मनगढन्त निष्कर्ष ४. श्वेताम्बर शिवभूति द्वारा दिगम्बरमत का वरण ५. शिवभूति के तर्क एवं मान्यताएँ दिगम्बरमतानुगामी ५.१. सचेललिंग का सर्वथा निषेध ५.१.१. उपधिग्रहण परिग्रह है ५.१.२. उपधिपरिग्रह से मूर्छादि अनेक दोष अवश्यंभावी ५.२. जिनकल्प के नाम से एकमात्र अचेल जिनलिंग का समर्थन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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