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________________ समाधि लाभ द्वार-सम्यग्ज्ञानोपयोग नामक नौवाँ द्वार श्री संवेगरंगशाला सम्यग्ज्ञानोपयोग नामक नौवाँ द्वार : - हे क्षपक मुनिराज ! तूं प्रमाद को मूल में से उखाड़कर ज्ञान के उपयोग वाला बन ! क्योंकि - ज्ञान जीवलोक (सर्व जीवों) का सर्व विघ्न बिना - रोग रहित चक्षु है, प्रकृष्ट दीपक है, सूर्य है और तीन भवन रूपी तमिस्रा गुफा में श्रेष्ठ प्रकाश करने वाला काकिणी रत्न है। यदि जीव लोक में जीवों को ज्ञान चक्षु न हो, तो मोक्ष मार्ग संबंधी सम्यक् प्रवृत्ति नहीं होती अथवा कुबोध रूपी तितली को नाश करने वाला ज्ञान दीपक बिना मिथ्यात्व रूपी अंधकार के समूह से घिरा हुआ बिचारा यह जगत कैसा दुःखी होता? तथा यह अंधकार - अज्ञान का नाशक, सम्यग् ज्ञान रूपी सूर्य के प्रभाव से संसार रूपी सरोवर में विवेक रूपी सुंदर कमल का विकासक है ।। ७८०० ।। यदि इस सम्यग्ज्ञान रूपी काकिणी रत्न का प्रयोग न हो तो अज्ञान रूपी प्रचंड अंधकार से भयंकर इन तीन भवन रूपी तमिस्रा गुफा में से श्री जिनेश्वर रूपी चक्रवर्ती के पीछे चलने वाला यह बिचारा मूढ़ भव्यात्मा रूपी सैन्य अस्खलित रूप से प्रस्थान करते किस तरह बाहर निकल सकता है! श्री जिनशासन से संस्कारित बुद्धिवाला और श्रुतज्ञान रूपी समृद्धिशाली ज्ञानी इस जीवलोक में श्रुतज्ञान से देव और असुर से युक्त मनुष्यों से युक्त, गरूड़ सहित, नाग सहित, तथा गंधर्व व्यंतर सहित ऊर्ध्व, अधो और तिछे लोक तथा जीव कर्म बंध से युक्त, गति और अगति आदि सबको जानता है। जैसे धागा युक्त सुई कचरे में गिरी हुई भी गुम नहीं होती वैसे सूत्र-अर्थात् श्रुतज्ञान सहित जीव भी संसार में परिभ्रमण नहीं करता । जैसे कचरे के ढेर में पड़ी हुई धागे बिना की सुई खो जाती है वैसे संसार रूपी अटवी में ज्ञान रहित पुरुष भी खो जाता है, अर्थात् संसार में भटकता है। जैसे निपुण वैद्य वेदकशास्त्र से रोग की चिकित्सा करना जानता है वैसे आगम से ज्ञानी चारित्र की शुद्धि को ज्ञान द्वारा करता है। जैसे वेदकशास्त्र के ज्ञान रहित वैद्य व्याधि की चिकित्सा नहीं जानता है वैसे आगम रहित पुरुष चारित्र की शुद्धि को नहीं जानता है। इसलिए मोक्ष के अभिलाषी अप्रमत्त पुरुषों को पहले पूर्व पुरुषों द्वारा कथित आगम में अप्रमत्त रूप से उद्यम करना चाहिए। बुद्धि हो अथवा न हो, फिर भी ज्ञान की इच्छा वाले को उद्यम करना चाहिए क्योंकि ज्ञानाभ्यास से वह बुद्धि कर्म के क्षयोपशम में साध्य हो जाती है। यदि एक दिन में एक पद को, अथवा पक्ष में आधा श्लोक को भी याद कर सकता है, फिर भी ज्ञान के अभ्यास वाला तूं उद्यम को मत छोड़ना । आश्चर्य तो देख! स्थिर और बलवान् पाषाण को भी अस्थिर जल की धारा खत्म करती है। शीतल और कोमल थोड़ा-थोड़ा भी हमेशा बहने वाला और पर्वत के संयोग को नहीं छोड़नेवाला जल पर्वत का भी भेदन कर देता है। बहुत भी अपरिमित - परावर्तन रहित और अशुद्ध, स्खलना और शंका वाले श्रुतज्ञान द्वारा मनुष्य जानकार ज्ञानी पुरुषों का हँसी का पात्र बनता है, और थोड़ा भी अस्खलित, शुद्ध एवं स्थिर परिचित स्वाध्याय से अर्थ का ज्ञान प्राप्त कर मनुष्य अलज्जित और अनाकुल बनता है। जो गंगा नदी की रेती का माप करने और जो दो हाथ के चुल्लू से समुद्र के जल को उलेचने में समर्थ होते हैं, वे ज्ञान के गुणों को माप सकते हैं। पाप से निवृत्ति, कुशल धर्म में प्रवृत्ति और विनय की प्राप्ति, ये तीनों ज्ञान के मुख्य फल हैं। संयम योग की आराधना और श्री वर्धमान प्रभु की आज्ञा, ये दोनों ज्ञान के बल से जान सकते हैं, इसलिए ज्ञान पढ़ना ही चाहिए। मोक्ष का सरल मार्ग जिसने प्रकट किया है, जो ज्ञान में उद्यमी है और जो ज्ञान योग से युक्त है, उन ज्ञानियों की निर्जरा का माप कौन कर सकता है? अल्पज्ञानी - अर्थात् अगीतार्थ को, दो, तीन, चार और पाँच उपवास से जो शुद्धि होती है, उससे अनेक गुणों की शुद्धि हमेशा खानेवाले ज्ञानी गीतार्थ को होती है। एक दिन में तपस्वी हो सकता है। इसमें कोई संशय नहीं है, परंतु अति उद्यम वाला भी व्यक्ति एक दिन में श्रुतधर नहीं हो सकता है। अनेक 326 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004037
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal
Publication Year
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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