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________________ महासेन राजा की कथा श्री संवेगरंगशाला स्तम्भिनी आदि विद्याओं के बल की परीक्षा करूँ, ऐसा सोचकर कुछ सुभटों के साथ राजा चला। राजा को जाते देखकर उसके पीछे बड़ा सैन्य भी चला। सैन्य, चलते ऊँचे हाथियों से अति भयंकर था, मगरमच्छ आदि चिह्नों वाली ध्वजाओं के समूह से शोभित रथ वाला, श्रेष्ठ सेवकों से सब दिशाओं से भरा हुआ, सर्व दिशाओं में फैले हुए घोड़ों का समूह वाला, गणनायक और दण्डनायकों से युक्त, युवतियों को और कायर को डराने वाला, युद्ध सामग्री उठाये हुए ऊँटों का समूह वाला, वेग वाले वाहनों के चलने से उड़ी हुई भूमि की रजवाला, उसमें सुभट, हाथियों, घोड़े आदि के रत्नों के अलंकार से सुशोभित वाहन तलवार आदि महाशस्त्रों से भयजनक भय से काँपते बालकों को मार्ग से भगाने वाला, प्रसन्न हुए भाट चारण उसकी बिरुदावली गाया जानेवाला, घोड़ों के हेयारव से भयभीत बने ऊँटों के समूह वाला, छत ऊपर चढ़े मनुष्यों द्वारा देखा जाता, हर्ष से विकसित नेत्र वाले महासुभटों से युक्त, बलवान शत्रुओं को क्षय करने में समर्थ तेजस्वी यश वाला, महान चतुरंग सैन्य नगर में से तुरन्त महासेन राजा के पीछे चला। उस समग्र सेना से घिरा हुआ, श्रेष्ठ घोड़े के ऊपर बैठा हुआ और उसके ऊपर ऊँचा श्वेत छत्र युक्त वह राजा जब थोड़ी दूर गया तब गाल कुछ विकसित हों, इस तरह धीरे से हँसकर उस पुरुष ने एक राजा के सिवाय अन्य समग्र सेना को चित्र समान स्तम्भित कर दी। ऐसी स्थिति देखकर अत्यन्त विस्मय होकर महासेन विचार करने लगा कि-अहो! महापापी होने पर भी ऐसी सुन्दर शक्ति वाला कैसे? ऐसे शक्तिशाली पुरुष को अकार्य करने का ज्ञानी पुरुषों ने निषेध किया है, किन्तु यह ऐसा अकार्य क्यों करता है? मैं मानता हूँ कि यह स्तम्भनादि करने वाला मन्त्र भी ऐसे ही अधम होंगे, इससे परस्पर सदृश प्रकृति वाला उनका सम्बन्ध हुआ है। अतः ऐसा सोचने से क्या प्रयोजन है? मैं भी उसे स्तम्भित करने के लिए सद्गुरु के पास से लम्बे काल से अभ्यास की हुई स्तम्भन विद्या का स्मरण करूँ। उसके बाद सर्व अंगों में रक्षा मन्त्र के अक्षरों का स्थापन करके. वाय रूप श्वासोच्छ्वास का निरोध (कुम्भक) करके, नासिका के अन्तिम भाग में नमाये हुए स्थिर नेत्र कमल वाले राजा, कमल के मकरन्द रस के समूह समान सुन्दर सुवास तथा श्रेष्ठ फैलने वाला प्रकाश किरणों वाला स्तम्भन कारक 'परब्रह्म' मंत्र का स्मरण करने लगा। उसके पश्चात क्षणमात्र समय जाते जब राजा ने उस पुरुष की ओर देखा, तब कुछ हंसते हुए उस पुरुष ने कहा-हे राजन्! चिरंजीव, पहले मेरी गति मंद हो गयी थी, वह तेरी स्तंभन विद्या से अब मेरी पवन वेग गति हो गयी है। इससे यदि तुझे स्त्री का प्रयोजन हो तो शीघ्रगति से पीछे आओ. ऐसा बोलते वह शीघ्रता से चलने लगा। उस समय राजा ने विचार किया कि-अहो! मेरी चिरकाल से अध्ययन की हुई विद्या भी आज निष्फल क्यों गयी? अथवा एक पराक्रम सिवाय अन्य सभी निष्फल है, परन्तु अब मैं अपने पराक्रम से ही कार्य सिद्ध करूँगा, ऐसा सोचकर दृढ़ चित्त वाला और बढ़ते उत्साह वाला वह राजा तुरन्त केवल एक तलवार साथ लेकर उसके पीछे चलने लगा ।।१७७।। 'यह राजा जा रहा है, यह देवी जा रही है, और यह वह पुरुष जा रहा है।' ऐसा लोग बोल रहे थे इतने में तो वह बहुत दूर पहुँच गया। प्रति समय चाबूक के मारने से घोड़े को दौड़ाते तीव्रगति से मार्ग का उल्लंघन करके राजा 'जब थोड़े अन्तर पर रहे हुए उस पुरुष को देखने पर भी पकड़ नहीं सका, इतने में तो बादल बिना की बिजली अदृश्य होती है वैसे रानी अदृश्य हो गयी और वह पुरुष भी किल के समान निश्चल बनकर राजा के सन्मुख खड़ा रहा ।।१८०।। राजा ने उसे अकेला देखकर विचार किया कि क्या स्वप्न है अथवा कपट है, या मेरा दृष्टि बंधन किया है? ऐसे विकल्प क्यों करूँ? इसे ही जान लूँ क्योंकि अज्ञात पुरुष पर प्रहार करना भी योग्य नहीं है। उसके बाद विस्मयपूर्वक राजा ने कहा-भो अनन्त शक्तिशाली! तूंने मेरी पत्नी का ही हरण नहीं किया, परन्तु पराक्रम से 15 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004037
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal
Publication Year
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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