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________________ श्री संवेगरंगशाला समाधि लाभ द्वार-प्रमाद त्याग नामक चौथा द्वार-अभयकुमार की कथा अभयकुमार की कथा राजगृह नगर में अभयकुमार आदि मुख्य मंत्रियों के साथ राजा राजसभा में बैठा था, श्रेणिक राजा के सामने विविध बातें चलते समय एक प्रधान ने कहा कि-हे देव! आपके नगर में अनाजादि के भाव तेज और दुर्लभ हैं, केवल एक मांस सस्ता और सर्वत्र सुलभ है। उसके वचन सामंत और मंत्रियों सहित राजा ने सम्यक् स्वीकार किया, केवल निर्मल बुद्धि वाले अभयकुमार ने कहा कि-हे तात! इस तरह मोहवश क्यों होते हो? इस जगत में निश्चय ही मांस सभी से महंगा है उस तरह धातु और वस्त्र आदि महंगा नहीं है, सुलभ है। मंत्रियों ने कहा कि थोड़ा मूल्य देने पर भी बहुत माँस मिलता है, तो इस तरह माँस को अति महंगा कैसे कह सकते हैं? उसे प्रत्यक्ष ही देखो! दूसरी वस्तु बहुत धन देने के बाद मिलती है। जब सब ने ऐसा कहा तब अभय मौन करके रहा। फिर उसी वचन को सिद्ध करने के लिए उसने श्रेणिक राजा को कहा कि-हे तात! केवल राज्य मुझे दो! राजा ने सभी लोगों को बुलाकर कहा कि मेरा सिर दर्द करता है अतः अभय को राज्य पर स्थापन करता हूँ। इस तरह स्थापनकर राजा स्वयं अंतपुर में रहा। अभयकुमार ने भी समस्त लोगों को दान मुक्त किया और अपने राज्य में अहिंसा पालन की उद्घोषणा करवाई। जब पाँचवा दिन आया तब रात में वेश परिवर्तन करके शोक से पीड़ित हो, इस तरह उन सामंत और मंत्रियों के घर में गया। सामंत आदि ने कहा कि-नाथ! इस तरह पधारने का क्या कारण है? अभय ने कहा कि-श्रेणिक राजा मस्तक की वेदना से अति पीड़ित है और वैद्यों ने उत्तम पुरुषों के कलेजे के माँस की औषधि बतलायी है, इसलिए आप शीघ्र अपने कलेजे का तीन जौ जितना माँस दो। उन्होंने भी सोचा कि यह अभयकुमार प्रकृति से क्षुद्र है इसलिए लांच देकर छुट जाय ऐसा विचारकर अपनी रक्षा के लिए सोना महोरें दी और एक रात में सभी के घरों से इस प्रकार कहकर अठारह करोड़ सोना मोहर ले आया। प्रभात काल होते और पाँच दिन पूर्ण होते अभयकुमार ने अपने पिता को राज्य पर वापिस स्थापन किया और वह अठारह करोड़ सोना मोहर का ढेर राज्य सभा में किया। इसे देखकर व्याकुल मन वाले श्रेणिक ने विचार किया कि-निश्चय ही अभयकुमार ने लोगों को लूटकर निर्धन कर दिया है, अन्यथा इतनी बड़ी धन की प्राप्ति कहाँ से होती? फिर नगरवासी लोगों के आशय को जानने के लिए श्रेणिक राजा ने त्रिकोण मार्ग, चार रास्ते, आदि बड़े-बड़े स्थानों पर तलाश करने के लिए गुप्तचरों को आदेश दिया। वहाँ 'प्रकट तेज वाले, प्रकट प्रभावी मनोहर अमृत की मूर्ति समान अभयकुमार यावच्चन्द्र दिवाकर चिरकाल तक राज्य लक्ष्मी को भोगो।' इस प्रकार नगर में सारे घरों में मनुष्यों के मुख से अभयकुमार का यश वाद सुनकर गुप्तचरों ने राजा को यथास्थित सारा वृत्तांत सुनाया। तब विस्मित मन वाले राजा ने अभयकुमार से पूछा कि-हे पुत्र! इतनी महान् धन संपत्ति कहाँ से प्राप्त की है? तब उसने भी विस्मित हृदयवाले श्रेणिक को 'तीन जौ के दानों के प्रमाण जितने माँस की याचना' आदि सारा वृत्तांत यथास्थित सुनाया। उसके बाद राजा ने और शेष सभी लोगों ने निर्विवाद रूप में मांस को अत्यंत महंगा और अति दुर्लभ रूप में स्वीकार किया। इस प्रकार सम्यग् रूप से सुनकर हे मुनिवर! आराधना के मन वाले अगर तूंने पूर्व में माँस सेवन किया हो तो उसे याद मत करना। इस तरह प्रसंगानुसार माँस आदि के स्वरूप कथन से संबद्ध मद्य द्वार को कहकर अब विषय द्वार को कहते हैं ।।७१७३।। दूसरा विषय प्रमाद का स्वरूप :-इसके पहले ही मद्य के जो दोष कहे हैं वही दोष विषय सेवन में भी प्रायः विशेषतया होते हैं। क्योंकि इस विषय में आसक्त मनुष्य विशेषतया शिथिल होता है। इस कारण से विषय 300 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004037
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal
Publication Year
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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