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________________ समाधि लाभ द्वार-अनुशास्ति द्वार-श्रुतमद द्वार-स्थूलभद्र की कथा श्री संवेगरंगशाला र वज्रधर भी शीघ्र सामने आया और अनेक सुभटों का क्षय करने वाला परस्पर युद्ध हुआ। लोगों का क्षय होते देखकर वज्रधर ने मल्लदेव को कहलवाया कि यदि तूं बल का अभिमान रखता है तो तूं और मैं हम दोनों ही लड़ेंगे। उभय पक्ष के निरपराधी मनुष्यों का क्षय करने वाले इस युद्ध से क्या लाभ है? उसने भी यह स्वीकार किया और दोनों परस्पर युद्ध करने लगे उनके युद्ध का संघर्ष मल्लों के समान खड़े होना, नीचे गिरना, पासा बदलना, पीछे हटना इत्यादि भयंकर देव और मनुष्यों को विस्मय कारक था, फिर प्रचंड भुजाबल वाले वज्रधर ने उसे शीघ्रमेव हरा दिया, इस तरह बलमद रूपी यम के आधीन होने से उसकी मृत्यु हुई। बलमद को इस प्रकार विशेष दोषकारक जानकर हे क्षपक मुनि! आराधना में स्थिर रहकर उसका आचरण मत करना। बलमद नाम का यह चौथा मद स्थान कहा। अब पाँचवां श्रुत के मद स्थान को भी अल्पमात्र कहते हैं ।।६७७७।। (५) श्रुतमद द्वार :-निरंतर विस्तार होने वाला, महा मिथ्यात्व रूपी आंधी वाला, प्रबल प्रभावाला, परदर्शन रूप ज्योतिश्चक्र के प्रचार वाला, परम प्रमाद से भरपूर, अति दुर्विदग्ध विलासी मनुष्य रूपी उल्लू समान और दर्शन के लिए प्रयत्न करते अन्य जीव समूह की दृष्टि के विस्तार को नाश करती ऐसी महाकाली रात्री समान वर्तमान काल में मैं एक ही तीन जगत रूप आकाश तल में सम्यग्ज्ञान रूपी सूर्य हूँ। इस तरह हे धीर! तुझे अल्प मात्र श्रुतज्ञान का मद नहीं करना चाहिए। और जिसको सूत्र, अर्थ और तदुभय सहित चौदह पूर्व का ज्ञान होता है उनको भी यदि परस्पर छट्ठाण आपत्ति अर्थात् वृद्धि हानि रूप तारतम्य सुना जाता है तो उसमें श्रुतमद किस प्रकार का? उसमें और अद्यकालिक (वर्तमान के) मुनि अथवा जिनकी मति अल्प है और श्रुत समृद्धि भी ऐसी विशिष्ट नहीं है उनको तो विशेषतः श्रुतमद कैसे हो सकता है क्योंकि वर्तमान काल में अंग प्रविष्ट, अनंग प्रविष्ट श्रुत का शुद्ध अभ्यास नहीं है, नियुक्तियों में भी ऐसा परिचय नहीं और भाष्य, चूर्णि तथा वृत्तियों में भी ऐसा परिचय नहीं है। संविज्ञ गीतार्थ और सत्क्रिया वाले पूर्व मुनियों द्वारा रचित प्रकीर्णक-पयन्ना आदि में भी यदि ऐसा परिचय नहीं है तो श्रुतमद नहीं करना चाहिए। यदि सकल सूत्र और अर्थ में पारंगत होने पर भी श्रुतमद करना योग्य नहीं है तो उसमें पारंगत न हो फिर भी मद करना वह क्या योग्य गिना जाय? क्योंकि कहा है कि सर्वज्ञ के ज्ञान से लेकर जीवों की बुद्धि, वैभव तारतम्य योग वाले-अल्प, अल्पतर आदि न्यूनता वाले है, इसलिए 'मैं पंडित हूँ ऐसा इस जगत में कौन अभिमान करें! दुःशिक्षित अज्ञ कवियों की रचना, शास्त्र विरुद्ध प्रकरण अथवा कथा प्रबंधों को दृढ़तापूर्वक पढ़ना फिर भी उसका मद करने का अवकाश ही नहीं है। केवल सामायिक, आवश्यक का श्रुतज्ञान भी मदरहित आत्मा को निर्मल केवल ज्ञान प्राप्त करवाता है और श्रुत समुद्र के पारगामी भी मद से दीर्घकाल तक अनंतकाय में रहते हैं। इसलिए सर्व प्रकार से मद का नाश करने वाले श्रुत को प्राप्त करके भी उसका अल्प भी मद मत करना और अनशन वाला तुझे तो विशेषतया नहीं करना चाहिए। क्या तूंने सुना नहीं कि श्रुत के भंडार भी स्थूलभद्र मुनि को श्रुतमद के दोष से गुरु ने अंतिम चार पूर्व का अध्ययन नहीं करवाया था? ।।६७९०।। वह इस प्रकार : आर्य स्थूलभद्र सूरि की कथा पाटलि पुत्र नगर में प्रसिद्ध यश वाला नंद राजा का सारे निष्पाप कार्यों को करनेवाला शकडाल मंत्रीश्वर था और उसका प्रथम पुत्र स्थूलभद्र दूसरा श्रीयक तथा रूपवती यक्षा आदि सात पुत्री थीं। उसमें सेना, वेणा और रेणा ये तीनों छोटी पुत्रियाँ अनुक्रम से एक, दो और तीन बार सुनते ही नया श्रुत याद कर सकती थीं। 1. अन्य कथानकों में सातों पुत्रियों की स्मरण शक्ति की बात कही है। 285 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004037
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal
Publication Year
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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