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________________ परगण संक्रमण द्वार-दिशा द्वार-आचार्य की योग्यता श्री संवेगरंगशाला वृद्धों का अनुकरण करने वाला, विनीत और सर्व विषय में अति स्थिर लक्षण वाला, सरलता से प्रसन्न कर सके ऐसे गुणों का पक्षपाती, देश-काल-भाव का ज्ञाता, परहित करने में प्रीति वाला, विशेषज्ञ और पाप से अति भीरु, सद्गुरु ने जिसे विधिपूर्वक दीक्षा दी हो, उसके बाद अनुक्रम से स्व-पर शास्त्रों के विधानों के अभ्यासी, चिर-परिचित सूत्र अर्थ वाला, उस-उस युग में आगम धरों में मुख्य शास्त्रानुसारी ज्ञान वाला, तत्त्वों को समझाने की विशिष्ट बुद्धि वाला, क्षमावान्, सत्क्रिया को करने में रक्त, संवेगी लब्धिमान्, संसार की असारता को अच्छी तरह समझने वाला, और उससे विरागी चित्तवाला, और सम्यग् ज्ञानादि गुणों का प्ररूपक और स्वयं पालक, शिष्यादि तथा गच्छ समुदाय के उपयोगी उपकरणादि का संग्रह करने वाला अप्रमादी, ज्ञानी तपस्वी गीतार्थ, कथा करने में कुशल तथा परलोक का हित करने वाला, गुणों के समूह को ग्रहण करने में कुशल, सतत गुरुकुल वास में रहने वाला, आदेय वाक्य बोलने वाला, अतिशय प्रशमरस-संयम गुण में एक रस वाला, प्रवचन, शासन और संघ प्रति वात्सल्य वाला, शुद्ध मन वाला, शुद्ध वचन वाला, शुद्ध काया वाला, विशुद्ध आचार वाला, द्रव्य, क्षेत्र आदि में आसक्ति बिना का और सर्व विषय में जयणायुक्त, इन्द्रियों का दमन करने वाला, तीन गुप्ति से गुप्त, गुप्त आचार वाला, मात्सर्य रहित, शिष्यादि को अनुवर्तन कराने में कुशल, तात्त्विक उपकार में उद्यत, दृढ़ प्रतिज्ञा वाला, उठाई हुई जिम्मेदारी के भार को वहन करने में श्रेष्ठ वृषभ समान, आशंसा रहित, तेजस्वी, ओजस्वी, पराक्रमी, अविषादी, गुप्त बात दूसरों को 'नहीं' कहने वाला, धीर, हितमित और स्पष्टभाषी, कान को सुखकारी, उदार आवाज वाला होता है। ___ मन, वचन, काया की चपलता रहित, साधु के सारे गुणों रूपी ऋद्धि वाला, बिना परिश्रम से आगम के सूत्र अर्थ को यथास्थित कहने वाला, उसमें भी दृढ़ युक्तियाँ, हेतु, उदाहरण आदि देकर जिस विषय को आरंभ किया हो उसकी सिद्धि करने में समर्थ। पूछे हुए प्रश्नों का तत्काल उत्तर देने में चतुर, उत्तम मध्यस्थ गुण वाला, पाँच प्रकार के आचार पालन करने वाला, भव्य जीवों को उपदेश देने में आदर वाला, पर्षदा को जीतने वाला, क्षोभ रहित, निद्रा को जीतने वाला-अल्प निद्रा वाला, विविध अभिग्रह स्वीकार करने में रक्त, काल को सहन करने में धीरता धारण करने वाला, जवाबदारी के भार को सहन करने वाला, उपसर्गों को सहन करने वाला, और परीषहों को सहन करने वाला, तथा थकावट को सहन करने वाला, दूसरे के दुर्वाक्यों को सहन करने वाला, कष्टों को सहन करने वाला, पृथ्वी के समान सब कुछ सहन करने वाला ।।४२००।। उत्सर्ग अपवाद के समय पर उत्सर्ग और अपवाद को सेवन करने में चतुर, फिर भी बाल-मुग्ध जीवों के समक्ष अपवाद का आचरण नहीं करने वाला, प्रारंभ में और परिचय के पश्चात् भी भद्रिक तथा समुद्र समान गंभीर बुद्धि वाला, राजा के खजाने के समान सर्व के लिए हितकर, मद्य के घड़े के समान, प्रकृति से ही मधुर और मद्य के ढक्कन के समान, बाह्य व्यवहार में भी मधुर और गर्जना रहित, निरभिमानी, उपदेशरूपी, अमृत जल की वृष्टि करने में तत्परता से युक्त, शिष्यादि प्राप्त करने से और शिष्यादि को ज्ञान क्रिया में कुशलता प्रकट करने से, सर्व काल में और सर्व क्षेत्रों में, देश से और सर्व से बुद्धि प्राप्त करते पुष्करावर्त मेघ के साथ बराबरी करने वाला अर्थात् पुष्करावर्त मेघ गर्जना रहित वर्षा करने में तत्पर और उस-उस काल में उस-उस क्षेत्र में देश से और सर्व से अनाज उत्पन्न करने वाला और वृद्धि करने वाला होता है, वैसे शिष्यादि को भी वे गर्जना रहित वात्सल्य भाव से ज्ञानामृत की वर्षा करने में तत्पर, यथायोग्य शिष्य को योग्य बनाने वाला होता है। अभ्यंतर और बाह्य सामर्थ्य वाला तथा स्व और पर की अनुकम्पा में तत्पर तथा सूत्र पढ़ने से क्रिया में सीता सरोवर (सीतोदा के द्रह) के समान नित्य बहते हुए श्रोत के समान, और अध्ययन की क्रिया में सर्व ओर से पानी (जल) को प्राप्त करते श्रोत के सदृश साधु की खोज करें। - 179 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004037
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal
Publication Year
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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