SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काबुमां लेवा, खमवा खमाववा द्वारा ए कषायोने केवी रीते अंकुशमां राखवा तेनुं आबेहूब वर्णन करवामां आव्युं छे. अहिं शय्या शब्दनो अर्थ वसति समजवानो छे. साधुनी वसति केवी होय? आजु बाजु पाडोश होय ते पण केव होय? स्त्रीना शब्दो ज्यां न संभळाय. रूप न देखाय वगेरे वगेरे वातोनुं वर्णन करी साधकने खूब खूब सावचेत रहेवा सूचन करवामां आव्युं छे. छेल्लुं चोथुं समाधिलाभ द्वार छे. आना पेटाद्वारो नव छे. आ दरेक पेटाद्वारोना अवान्तर द्वारो पण आपवामां आव्या छे. अमांना एक एक द्वार आराधना माटे ध्यान खेंचे तेवा छे. तेमां पण चतुःशरणगमन, सुकृतअनुमोदन ने दुष्कृत-निंदा द्वारो, जे पेटाद्वारोमां पण अवांतर द्वारो छे-ते सविशेष ध्यान खेंचे तेवा छे. अरिहंत आदिनुं शरण शा माटे स्वीकारवानुं छे? ए तारको राजकुलमां जनम्या हता. सुखसामग्रीमां उछरी मोटा थया हता. ऋद्धिना ढगला वच्चे एमनुं जीवन पसार थई रह्युं हतुं. माताना गर्भमां आवतां जेमने ईन्द्रादि देवताओ मता हता, तेमणे पण माथाना वाळ उखेडी लोच करी स्वपर हितार्थे प्रवज्यानो स्वीकार कर्यो अने ज्यां सुधी घाती कर्मोनो क्षय न थयो त्यां सुधी पलांठी वाळीने तेओ बेठा पण नहीं. आवा परमात्माने शरणे एटला माटे ज जवानुं छे के "संसारना गमे तेटला सुंदर मनमोहक के सानुकूण सुखो मळे तो पण ते त्याज्य छे" आवी बुद्धि आवे त्यारे ज आ परमात्माने शरणे साची रीते जई शकाय छे. बाकी परमात्मानुं शरणुं मळतुं नथी. ए वात निश्चित छे. आ रीते परमात्मानुं शरणुं प्राप्त करनार जे पुण्यशाली आत्मा भूतकाळना दुष्कृतोनी गर्हा करे, सुकृतोनी अनुमोदना करे अने आत्माने अरिहंतमय बनाववा तेनुं ध्यानादि करे छे अने अवश्य संघयणादि सामग्री संपन्न होय तो ते, ते ज भवमां अथवा बहु ज थोडा भवमां सकलकर्मनो क्षय करी मुक्तिपदने पामे छे. संसार कर्म राजा ऊभो करेलो निर्दयता अने निष्ठुरतापूर्वकनो तमाशो छे. संसारी जीवो ए तमाशो के नाटक भजवनारा नाटकीआ छे. चार गति ए नाटकशाळानी रंगभूमि छे. कर्मराजा ए नाटकनो सूत्रधार ( मेनेजर) छे. ग्रंथकार कहे छे के आ निर्दय एवा कर्मराजाने पनारे जो तमारे न पडवुं होय तो संवेगगुणना स्वरूपने आ ग्रन्थमांथी गुरुमुखे सांभळो, सांभळ्या पछी समजो, समज्या पछी श्रद्धा करो अने पछी जीवनमां उतारवा सतत प्रयत्नशील बनो. आ रीतनो प्रत्यन सतत चालु हशे तो कर्मराजा तमारा पगमां नमतो आवशे. अहिं तमे मुक्तिना सुखनो नमुनो चाखशो अने ज्यां सुधी मुक्तिमां नहिं जाओ त्यां सुधी संसारना सुखो तमारी पगचंपी करशे, अने त्यारे तमारे तो एनी साथे अणबनाव रहेशे तेमज बहु नजीकमां तमे सर्कल कर्मनो क्षय करी मुक्तिपदना भोक्ता बनशो. आ ग्रन्थनी खूबी ए छे के द्वारो अने पेटाद्वारोना वर्णनमां सिद्धान्तसिद्ध दृष्टांतो आपीने ते द्वारो अने पेटद्वानी समजण खूब ज सुंदरी रीते आपी छे. आ ग्रन्थनी वात कोई प्राचीन ग्रन्थमांथी ग्रन्थकारे लीधेली होय तेम जणाय छे. केम के रचयिता पू. जिनचंद्रसूरिजी महाराज छे. अने जे वात करवामां आवी छे ते भगवान महावीरना स्वहस्तदीक्षित शिष्य महसेन राजर्षिनी छे. भगवान महावीर निर्वाण पाम्या पछी भगवान गौतमस्वामीजीने केवळज्ञान थाय छे. तेमने आ लघुबंधु पोतानी वृद्धावस्थामां कंपते शरीरे पूछे छे के ज्यारे शरीर विशिष्ट तपनी आराधनामां उपयोगी न रहे त्यारे अंतिम आराधना केवी रीते करवी ? एना खुलासा सविस्तर रीते भगवान गौतमस्वामीजी महाराज कहे छे ए ज आ ग्रन्थनो विषय छे. ट्रंकमां संवेगरंगशाळा एटले मोहनी सामे विंझाती शमशेर. एनी एक एक गाथामां मोहनी वेदना अने चीत्कारना डुसकां संभळाय छे. एमां संभळाय छे शिवसुंदरीना पायलनो झंकार. एनी गौरवगाथा एटले क्रूर अने vi Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.004037
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti Bhinmal
Publication Year
Total Pages436
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy