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पजेसिवनेस है, वह दूसरे को तो दूसरा मानती है, लेकिन दूसरे की चीज को अपना मानने की हिम्मत करने लगती है। अगर दूसरा भी अपना हो जाये तब दान पैदा होता है। और जब दूसरे की चीज भर अपनी हो जाये और दूसरा दूसरा रह जाये तो चोरी पैदा होती है। __चोरी और दान में बड़ी समानता है। वे एक ही चीज के दो छोर हैं। चोरी में दूसरे की चीज अपनी बनाने की कोशिश है, दान में दूसरे को अपना बनाने की कोशिश है। चोरी में हम दूसरे की चीज छीन कर अपनी कर लेते हैं। दान में हम अपनी चीज दूसरे की कर देते हैं। एक अर्थ में दान चोरी का प्रायश्चित्त है। अक्सर दानी कभी अतीत का चोर होता है, और अक्सर चोर भविष्य का दानी हो सकता है। यह जो चोरी है, यह अगर चीजों तक ही संबंधित होती तो बहुत बड़ी बात न थी। जहां तक वस्तुओं की चोरी का संबंध है, इससे कानून, न्याय, राज्य, समाज का जोड़ है। धर्म से तो किसी और गहरी चोरी का संबंध है।
तो ऐसा हो सकता है कि एक दिन आ जाये कि संपत्ति ज्यादा हो, एफ्लुएंट हो तो वस्तुओं की चोरी बंद हो जाये, लेकिन उस दिन भी अचौर्य का महत्व रहेगा। इसलिए साधारणतः जिसे हम धार्मिक व्यक्ति कहें वह जिस चोरी से रोकने की बात कर रहा है, वह चोरी तो बहुत जल्दी खत्म हो जायेगी। लेकिन कोई महाव्रत कभी खत्म नहीं हो सकता। इसलिए अचौर्य का कोई और गहरा अर्थ भी है, जो सदा सार्थक रहेगा, सदा प्रासंगिक रहेगा। अगर किसी दिन पूरी तरह समाज समृद्ध हो गया तो चोरी तो बंद हो जायेगी। जो वस्तुओं की चोरी है, वह अधिकतर गरीबी के कारण पैदा होती है। लेकिन और भी चोरियां हैं। महाव्रत का संबंध उन गहरी चोरियों से है।
तो पहले उस गहरी चोरी को हम थोड़ा समझें जिसमें हम सब सम्मिलित हैं, वे लोग भी जिन्होंने कभी किसी की वस्तु नहीं चुराई होगी।
चोरी का अर्थ ही क्या है? चोरी का गहरा आध्यात्मिक अर्थ है कि जो मेरा नहीं है, उसे मैं मेरा घोषित करूं। बहुत कुछ मेरा नहीं है जिसे मैंने मेरा घोषित किया है, यद्यपि मैंने कभी किसी की चोरी नहीं की है।
शरीर मेरा नहीं है, लेकिन मैं मेरा घोषित करता है। चोरी हो गई, अध्यात्म की दृष्टि से चोरी हो गई। शरीर पराया है, शरीर मुझे मिला है, शरीर मेरे पास है। जिस दिन मैं घोषणा करता हूं कि मैं शरीर हूं उसी दिन चोरी हो गई। आध्यात्मिक अर्थों में मैंने किसी चीज पर दावा कर दिया, जो दावा अनाधिकारपूर्ण है, मैं पागल हो गया। लेकिन हम सभी शरीर को अपना, अपना ही नहीं, बल्कि मैं ही हूं ऐसा मान कर चलते हैं।
मां के पेट में एक तरह का शरीर था आपके पास। आज अगर आपके सामने उसे रख दिया जाये तो खाली आंखों से देख नहीं सकेंगे। बड़ी खुर्दबीन चाहिए जिससे दिखाई पड़ सकेगा और कभी न मानने को राजी होंगे कि कभी यह मैं था। फिर बचपन में एक शरीर था जो रोज बदल रहा है। प्रतिदिन शरीर बह रहा है। अगर हम एक आदमी के जिंदगी भर के चित्र रखें सामने, तो वह आदमी हैरान हो जायेगा कि इतने शरीर मैं था! और मजे की बात है कि इन सारे शरीरों में यात्रा करते वक्त हर शरीर को उसने जाना कि यह मैं हूं।
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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
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